tag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post3442560724512157975..comments2023-10-06T08:40:38.795-07:00Comments on सृजन-यात्रा: दो कविताएं/सुभाष नीरवसुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-18276734605137949702010-08-08T22:12:02.761-07:002010-08-08T22:12:02.761-07:00बहुत सटीक बहुत अछि पन्तियाँ है ...बहुत सटीक बहुत अछि पन्तियाँ है ...मंजुलाhttps://www.blogger.com/profile/10884573161296513745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-5076528591231905712010-08-08T22:11:38.610-07:002010-08-08T22:11:38.610-07:00बहुत सटीक बहुत अछि पन्तियाँ है ...बहुत सटीक बहुत अछि पन्तियाँ है ...मंजुलाhttps://www.blogger.com/profile/10884573161296513745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-38519815456874881932010-07-30T03:48:45.132-07:002010-07-30T03:48:45.132-07:00सुभाष जी ,.
नमस्कार
आप कि दोनों कविताओ का सार देखे...सुभाष जी ,.<br />नमस्कार<br />आप कि दोनों कविताओ का सार देखे तो शायद येही लगेगा कि इंसान मौका परस्त है भले ही सिगरेट के रूप में आप चितरं हो या सिखर छूने कि चाह में अपना धरातल भूल जाना ! जब सिगरते को अवसर मिलता है तो जहा वो अपना रूप देखा देती है तो चोटिया भी अपने धरातल पे गेरो को कदम रखने नहीं देती ,<br /> आभारसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-60714330763973531352010-07-26T15:47:30.733-07:002010-07-26T15:47:30.733-07:00बहुत बढ़िया लगीं आप की कविताएँ --सहज ही भीतर कहीं ...बहुत बढ़िया लगीं आप की कविताएँ --सहज ही भीतर कहीं उतर गईंDr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-84689534876486104662010-07-24T12:50:24.259-07:002010-07-24T12:50:24.259-07:00देर से, कई दिन बाद आई हूँ| आकर अच्छा लगा| एक एक कर...देर से, कई दिन बाद आई हूँ| आकर अच्छा लगा| एक एक कर आपके सभी ब्लॉग ब्लॉग पढ़े हैं अभी|<br /><br />यथार्थ के धरातल पर उगी इन उर्ध्वगामी रचनाओं के लिए आपको बधाई|Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-5186603511294572092010-07-08T22:47:09.171-07:002010-07-08T22:47:09.171-07:00जिये गये सच की तरह आपकी कवितायें कमाल हेँ ...इनमे ...जिये गये सच की तरह आपकी कवितायें कमाल हेँ ...इनमे एक संभावना की तलाश है ..बधाईविधुल्लताhttps://www.blogger.com/profile/15471222374451773587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-34944107747880935132010-07-06T03:04:04.086-07:002010-07-06T03:04:04.086-07:00सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका...सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका अपमान करना है। आपकी पहली कविता इतनी सहजता से अंदर तक उतर जाती है जैसे कोई मुहावरा हो। बधाई। <br />राजेश उत्साही <br />utsahi@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-3745863089984093362010-07-06T03:04:04.085-07:002010-07-06T03:04:04.085-07:00सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका...सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका अपमान करना है। आपकी पहली कविता इतनी सहजता से अंदर तक उतर जाती है जैसे कोई मुहावरा हो। बधाई। <br />राजेश उत्साही <br />utsahi@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-72553267548645128872010-07-05T23:41:21.580-07:002010-07-05T23:41:21.580-07:00सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका...सचमुच कविताएं ऐसी हैं कि उनके लिए कुछ भी कहना उनका अपमान करना है। आपकी पहली कविता इतनी सहजता से अंदर तक उतर जाती है जैसे कोई मुहावरा हो। बधाई।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-3803268585142633042010-07-05T11:22:32.400-07:002010-07-05T11:22:32.400-07:00भाई रंजन ज़ैदी का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी कविता ...भाई रंजन ज़ैदी का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी कविता "आदमी की फितरत" में आए गलत शब्द की ओर संकेत किया। दरअसल, टंकण में कई बार अशुद्धियाँ चली जाती हैं। अब वह शब्द सही कर लिया गया है।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-80666477813297184422010-07-05T08:11:29.458-07:002010-07-05T08:11:29.458-07:00कविताएं दोनों सचमुच बहुत अच्छी हैं, लेकिन भाषा की ...कविताएं दोनों सचमुच बहुत अच्छी हैं, लेकिन भाषा की नदी को पार पाना कठिन है.pakherunoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-86446076143046140212010-07-05T01:04:50.821-07:002010-07-05T01:04:50.821-07:00शिखरों पर लोग अच्छीइ कविता है ऽअपका कवि रूप सचमुच ...शिखरों पर लोग अच्छीइ कविता है ऽअपका कवि रूप सचमुच सराहनीय है ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-46986079561580365672010-07-04T09:59:49.909-07:002010-07-04T09:59:49.909-07:00यथार्थ के धरातल पर अच्छी कवितायेँ हैं। पढवाने के ल...यथार्थ के धरातल पर अच्छी कवितायेँ हैं। पढवाने के लिए धन्यवाद !उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-54807980478270776272010-07-04T08:49:25.579-07:002010-07-04T08:49:25.579-07:00नीरव जी 'शिखरों के लोग ' बेजोड़ कविता है.प...नीरव जी 'शिखरों के लोग ' बेजोड़ कविता है.पहले भी कई वार पढी है.नपे तुले शब्दों में उन पर गहरी चोट करती कविता ----जो रंगीन पतंग की तरह आसमान में बहुत ऊँची उड़ान तो भरते हैं लेकिन जिस ज़मीन पर आकर गिरते हैं वह उनकी नहीं रहती है.बधाई.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-89293472544796921242010-07-04T07:07:18.404-07:002010-07-04T07:07:18.404-07:00दूसरों की दी हुई आँच को ही अपनी ज़िन्दगी का मक़सद सम...दूसरों की दी हुई आँच को ही अपनी ज़िन्दगी का मक़सद समझने वालों का हस्र इससे अलग शायद ही होता हो। आदमी (यानी कि भोगने के लिए आँच देने वाले) की इसमें कोई ग़लती नहीं। जेहाद के नाम पर आग बने फिरते सारे आतंकी इस श्रेणी में आते हैं। एक बार सुलगाए और भोग लिए जाने के बाद अन्तत: वे मसले जरूर जाते हैं। दूसरा कोई रास्ता उनके लिए नहीं होता।<br />दूसरी कविता अपने-आप में स्वयं व्याख्यायित है। यही होता है, यही होना भी चाहिए।बलराम अग्रवालnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-19230799155513329952010-07-04T04:02:48.058-07:002010-07-04T04:02:48.058-07:00सच ही कहा तुमने कि जिन्होंने शिखरों की चाह में अप...सच ही कहा तुमने कि जिन्होंने शिखरों की चाह में अपनी जमीन छोड़ दी वे कहीं के नहीं रहे. <br /><br />दोनों ही कविताएं छोटी होते हुए भी अपने में गहन भाव समेटे हुए हैं.<br /><br />बधाई.<br /><br />चन्देलरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-33618177649707033902010-07-04T02:10:00.264-07:002010-07-04T02:10:00.264-07:00Aadmee kee fitrat aur Shikhron ke
log dono hee kav...Aadmee kee fitrat aur Shikhron ke<br />log dono hee kavitaaon kee sundar<br />sahaj bhavabhivyakti achchhee lagee<br />hai.Shikhron ke log kee ye panktiyan to khoob hain --<br /> JO KATE NAHIN <br /> APNEE ZAMEEN SE <br /> SHIKHRON KO <br /> CHHONE KE BAAD BHEE <br /> GIRNE KAA BHAY <br /> UNHEN KABHEE NAHIN RAHAA <br /> Subhash jee,aapkee kavya<br />panktiyon ke seedhe-saade bhaav <br />seedhee -saadee bhasha mein jab<br />padhtaa hoon tab meree yah dharna bantee hai ki kisee manje hue sheersh kavi kee kavitaaon ko maine<br />padh kar aanand liya hai.Isee tarah<br />aap likhte rahiye aur jan - maanas<br />ko rijhate rahiye.Shubh kaamnaa.PRAN SHARMAhttp://mahavirsharma.blogspot.comnoreply@blogger.com