tag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post7203576514777393819..comments2023-10-06T08:40:38.795-07:00Comments on सृजन-यात्रा: लघुकथासुभाष नीरवhttp://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-25995871446689582802011-11-02T00:37:34.328-07:002011-11-02T00:37:34.328-07:00सुभाष जी ,
इस कथा से कम से कम लोगों को यह तो सीख ल...सुभाष जी ,<br />इस कथा से कम से कम लोगों को यह तो सीख लेनी चाहिए कि अगर कोई अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाये तो बाकि लोगों को भी खामोश नहीं रहना चाहिए ...यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि गलत कार्य को होने से रोकें ....वर्ना भ्रष्टाचार और बढ़ता जायेगा<br />....रूप सिंह जी यह आदत छूटनी भी नहीं चाहिए ....:))<br /><br />बहुत अच्छी प्रेरणादायक लघु कथा .....<br /><br />बधाई ....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-49824172320074784522011-10-30T00:31:59.959-07:002011-10-30T00:31:59.959-07:00बेहद तीखी लघुकथा है. ऎसी स्थितियां अक्सर आकर सामने...बेहद तीखी लघुकथा है. ऎसी स्थितियां अक्सर आकर सामने खडी हो जाती हैं और समझ में नहीं आता कि क्या किया जाये? कई बार दैनिक यात्री ऎसी चीजों से जूझने के लिए अनौपचारिक संगठन भी बना लेते हैं, पर तब वे स्वयं भी समस्या बन जाते हैं. उम्मीद है रचना पाठकों को सही समाधान की दिशा में सोचने को विवश करेगी.उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-53948296580486022752011-10-27T06:25:02.963-07:002011-10-27T06:25:02.963-07:00नीरव बधाई इस लघुकथा को दोबारा पढ़वाने के लिए. व्यवस...नीरव बधाई इस लघुकथा को दोबारा पढ़वाने के लिए. व्यवस्था जब क्रूर होती है और वह होती ही है, आज से नहीं युगों से है, तब भले व्यक्ति का यही हाल होता है. लोग विरोध करने वाले को मूर्ख समझते हैं. खुद ही भुक्तभोगी हूं और विरोध के लिए उपहास का पात्र बना हूं एक बार नहीं अनेक बार लेकिन आदत है कि छूटती ही नहीं जबकि वक्त अब इतना खराब आ गया है कि ऎसे लोगों की जान पर भी कई बार बन आती है.<br /><br />दीपावली की शुभकामना के साथ,<br /><br />चन्देलरूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-32878469249875802452011-10-27T01:20:19.747-07:002011-10-27T01:20:19.747-07:00सच्चाई बयान करती एक सार्थक रचना के लिए मेरी बधाई.....सच्चाई बयान करती एक सार्थक रचना के लिए मेरी बधाई...।<br /><br />मानीप्रेम गुप्ता `मानी' https://www.blogger.com/profile/03031758649360861323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-91139393263943981172011-10-25T10:49:17.735-07:002011-10-25T10:49:17.735-07:00अकेला चना पढी ! सच बोलने का मूल्य है जो सुकरात के ...अकेला चना पढी ! सच बोलने का मूल्य है जो सुकरात के ज़माने से आज तक चुकाना होता है ! रचना सुन्दर है !बधाई !<br />Rekha MaitraAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-30238443208619691402011-10-24T21:08:03.500-07:002011-10-24T21:08:03.500-07:00ग़लत कार्य का विरोध करने वाले को अक्सर ऐसी ही परिस...ग़लत कार्य का विरोध करने वाले को अक्सर ऐसी ही परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, इसी लिए ज़्यादातर लोगों की सोच ‘जैसा चल रहा है, चलने दो’ वाली हो जाती है...। एक सटीक रचना के लिए बधाई...।<br />प्रियंकाप्रियंका गुप्ता https://www.blogger.com/profile/10273874634914180450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-27807491535989410032011-10-24T17:45:28.700-07:002011-10-24T17:45:28.700-07:00व्यवस्था की यह हेकड़ी समाज में सब जगह बरकरार है। को...व्यवस्था की यह हेकड़ी समाज में सब जगह बरकरार है। कोई भी क्षेत्र इससे मुक्त नहीं है । जिसके पास ज़रा -सी भी ताकत है( चाहे वह जुगाड़ की हो या किसी पद या कद की) वह बाकी को घास -कूड़ा ही समझता है ; लेकिन अगर सामने उससे बड़ी ताकत वाले लोग हों तो पूँछ हिलाने का काम भी उतनी ही जल्दी करता है । बहुत अच्छी लघुकथा ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-46432336833189793562011-10-24T11:47:44.286-07:002011-10-24T11:47:44.286-07:00ytharth laghukatha ke liye aapko
badhaaee .ytharth laghukatha ke liye aapko<br />badhaaee .PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-68369595535415935112011-10-21T20:12:48.813-07:002011-10-21T20:12:48.813-07:00शायद यही वजह है कि लोग सही होते हुए भी विवाद से दू...शायद यही वजह है कि लोग सही होते हुए भी विवाद से दूर रहते हैं और जानते हुए भी चुप रह जाते हैं. अगर गलत के प्रति आवाज़ उठाया तो खामियाजा हिन् भुगतना पड़ता है और साथ भी कोई नहीं देता. आज के समाज का सच है ये. बधाई.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-72781176412687225692011-10-18T22:45:52.899-07:002011-10-18T22:45:52.899-07:00लघुकथा की शुरूआत बेहतर है। पर अंत अस्पष्ट सा है।...लघुकथा की शुरूआत बेहतर है। पर अंत अस्पष्ट सा है। यह समझ नहीं आया कि विरोध करने वाला क्या वास्तव में बिना टिकट था। उसके पास जो टिकट था क्या वह वास्तव में उस बस का नहीं था। उसके हाथ में जो सौ रूपए की पर्ची थी,क्या उसके बदले में उसने उन्हें सौ रूपए दिए थे। अगर दिए थे तो क्यों।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3083653920912210863.post-49659132538089176832011-10-18T10:06:54.741-07:002011-10-18T10:06:54.741-07:00संघर्ष की राह पर आगे बढ़ने से पहले इसीलिए हालात का ...संघर्ष की राह पर आगे बढ़ने से पहले इसीलिए हालात का जायजा ले लेना आवश्यक है। कुत्तों से घिरे आदमी को चारों तरफ जब भेड़िये नजर आ रहे हों तो बचाव की गुहार वह किससे करेगा?बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.com