शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

कविताएं



सृजन-यात्रा’ के पिछले अंक में मैंने अपनी कविता ‘काम करता आदमी’ पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत की थी। अंक में प्रस्तुत हैं– पेड़ से जुड़ीं मेरी दो छोटी-छोटी कविताएं …


दो कविताएं/ सुभाष नीरव


पेड़-1

आँधी-पानी सहते हैं
धूप में तपते हैं, झुलसते हैं
तूफानों से करते हैं
मल्लयुद्ध
अपनी ज़मीन छोड़ कर
कहीं नहीं जाते ये पेड़।

मुसीबतों से डरना
और डर कर भागना
आता नहीं इन्हें।

कितने साहसी होते हैं ये पेड़
आदमी के आस पास होते हुए भी
आदमी की राजनीति से अछूते।

अपनी ज़मीन के प्रति
कितने वफ़ादार होते हैं ये पेड़ !
00


पेड़-2

मौसम ज़ुल्म ढाता है
और
चूसने लगता है जब
हरापन
दरख़्तों के चेहरे
पीले पड़ जाते हैं।

आपस में गुप्त
फ़ैसला होता है तब
और
सब के सब
दरख़्त
एकाएक नंगई पर उतर आते हैं।

हार कर एक दिन
मौसम अपने घुटने टेकता है
और तब फिर से
दरख़्तों पर
हरापन फूटता है।
00
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)

8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Priy Bhai
Aapki ped par likhi dono kvitaen padheen.Bahut aachhi lageen. Aapkee atma katha bhee sangharshon se paripoorna hai isiliye aap nirantar aur achha likh rahe hain. Meri shubhkamnayen evam badhaiyan.Main in dinon America mebete ke paas hoon, atah English font par likhana pad raha hai.
Punah Dhanyawad.
Dr.Hari Joshi
harijoshi2001@yahoo.com

सहज साहित्य ने कहा…

कविताओं की ताज़गी बहुत देर तक सुखद अहसास कराती है ।

बेनामी ने कहा…

Aapki dono kavitaayen achhi lagin preranadayak va jivanopayogi prakriti ke jariye hum jiwan ke liye bahut kuchh grahan kar sakte hain.
Ranjana Srivastava
siliguri

dr.amarjeet kaunke ने कहा…

subhash ji ! apki dono kavitaen bahut khubsurat hain....in kavitaon me vishey ki sahaj abhivyakti hi in ki khubsurti hai..bahut sadharn shabdon me apne bahut gambhir vastu ko pesh kia hai......v.v.congrates

बलराम अग्रवाल ने कहा…

आपस में गुप्त फैसला होता है तब/और सब के सब दरख्त/ एकाएक नंगई पर उतर आते हैं।
बहुत ही सार-गर्भित संकेत है। नंगई अगर हरापन, खुशहाली लाने के लिए हो, तो कौन इसे नहीं अपनाना चाहेगा? संघर्ष को नया स्पर्श देती कविताएँ।

सुरेश यादव ने कहा…

भाई नीरव जी आप की पेड़ पर दोनों कवितायेँ कई बार पढ़ने और सुनने का अवसर मिला है इन कवितायों में हमेशा ताजगी मिली है .कारन यह की संघर्ष शील जीवन का यह पेड़ स्वाभिमान की aधरती पर शाश्वत चेतना का सन्देश देता है ,यही इनका टिकाऊ पन है सहज अभिव्यक्ति की इन कविताओं के लिए हार्दिक बधाई

ashok andrey ने कहा…

priya bhai subhash jee aapki kavita ped 1-2 ne mere man ko kaphii gehre chhua hai bahut khubsurat
badhai

ashok andrey

राजीव तनेजा ने कहा…

दोनों कविताएँ..एक से बढकर एक