शनिवार, 5 सितंबर 2009

कविता









आग और धुआँ

सुभाष नीरव

धुआँ देख
हरकत में नहीं आते हैं वे।


‘दीखती नहीं हैं लपटें
नहीं, यह नहीं है आग…’

धुएँ का होना
उनके लिए आग नहीं है।

वे बैठे हैं बेहरकत
और धुआँ
इधर से उधर
उधर से इधर
ऊपर से ऊपर
गाढ़ा हो फैलता ही जाता है।


‘वो उठीं लपटें…
हाँ, यह है आग…’
और हरकत में आ जाते हैं वे।

चीखने लगते हैं सायरन
बजने लगती हैं घंटियाँ
दौड़ने लगती हैं दमकलें…


लेकिन
जब तक पहुँचते हैं वे आग तक
घंटियाँ और सायरन बजाती
दमकलों के साथ
कुछ नहीं रहता शेष
शेष रहता है
मातम
धुआँ
राख !
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)

14 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है आदमी समय रहते नहीं चेतता यही विनाश का कारण बन जाता है बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये

बेनामी ने कहा…

ਭਾਈ ਨੀਰਵ ਜੀ,
ਤੁਹਾਡੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਪਹਿਲੇ ਵੀ ਸਫਰ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਸਿਰਜਨ-ਯਾਤ੍ਰਾ ਦੇ ਰਾਸ੍ਤੇ ਹੁਣ ਫਿਰ ਗੁਜਰਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲਿਆ। ਬਹੋਤ ਚਂਗਾ ਲਗਾ।ਤੁਹਾਡੀ ਸਕ੍ਰਿਯਤਾ ਮੈਂਨੂ ਹੌਸਲਾ ਦੇਂਦੀ ਹੈ। ਧਨਵਾਦ।
ਤੁਹਾਡਾ
ਰਜਿਂਦਰ ਗੌਤਮ
b-226, rajnagar palam, new delhi-110077
ph. +91+11+25362321 mob: +91+9868140469

बेनामी ने कहा…

dhuan or aag bahut marmik hai. badhaaee!
-
Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com

बेनामी ने कहा…

Subhash Ji,

Many thanks for sending me the link of 'Sirjan Yatra.' I enjoy reading it. Thank you again.

Regards,


Balbir Sanghera
balbirsanghera@yahoo.com

Chhaya ने कहा…

बहुत खूब..... सुभाष जी....

Ria Sharma ने कहा…

katu par saty...aksar esa hee hota hai..jaan kii koi keemat nahi ....


last stanza is amazing !!!

अक्षर जब शब्द बनते हैं ने कहा…

विचार से ओत-प्रोत कविता। धुँआ से आग का अनुमान लग चाहिये।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

shesh rahta hai ...
matam
dhuaan
rakh

lajwaab .....!!

बेनामी ने कहा…

Dear Subhash Ji,

Thank you very much for sending me the link for sryjan yatra. I also checked your blog and read some poems and a chapter from a novel written by couple of my friends Minnie grewal and Harjit Atwal. You are doing a wonderful job. I will send you few poems in Punjabi in a day of so.

Thanks again.
Regards
Balbir Sanghera.
balbirsanghera@yahoo.com

सुरेश यादव ने कहा…

भाई नीरव जी कविता पहले भी पढ़ी है आग है जो बार बार सुलगती ,जलती और फिर बुझती भी है.इस बीच जो भी जलाती है -जीवन जलाती है.इस अनुभूति के लियेब बधाई.

बेनामी ने कहा…

कड़वी सच्चाई को सीधे-सादे शब्दों में बयान करती कविता..... बधाई!
इला

राजीव तनेजा ने कहा…

एक ही आग के दो-दो पहलू...बहुत बढिया

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...