शनिवार, 3 अप्रैल 2010

गाहे-बगाहे




ब्लॉग की दुनिया के दोस्तो, मेरे नये-पुराने साहित्यिक मित्रो !
इस बार ‘सृजन-यात्रा’ में अपनी कोई रचना प्रकाशित करने का मन नहीं कर रहा, बस आपसे दो-एक बातें साझी करने की इच्छा जागी है। वैसे भी काफी दिनों से मैं अपने इस ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं डाल पाया हूँ। 3 नवंबर 2009 की पोस्ट ‘स्मृति-शेष’ पिता में मैंने अपने दिवंगत पिता को याद किया था और उसके बाद 10 दिसंबर 2009 में अपनी एक कविता पोस्ट की थी – “पढ़ना चाहता हूँ एक अच्छी कविता…”। फ़िर काम के गहरे बोझ की गठरी के नीचे दबता-दबता और कुछेक व्यक्तिगत परेशानियों से जूझता मैं गहरे तनाव और अवसाद का शिकार हो गया और नतीजा यह निकला कि स्वास्थ बुरी तरह गड़बड़ा गया। डॉक्टर की सलाह पर पत्नी और बच्चों ने कंप्यूटर के सामने बैठने की सख़्त मनाही कर दी। फरवरी 2010 तो पूरा यूँ ही निकल गया। मार्च 2010 में ऑफिस जाने योग्य हुआ तो ऑफिस से लौट कर घर में मेल चेक करने के बहाने चोरी-छिपे अपने उन ब्लॉग्स पर काम किया जिन पर अधिक लम्बे मैटर की दरकार नहीं होती। अब चूंकि स्थिति पहले से बेहतर है तो धीरे-धीरे घरवालों का विरोध कम होने लगा है।

मैंने ब्लॉग की दुनिया में जब प्रवेश किया था(14 अगस्त 2007) तो मेरे मन में ‘साहित्य’ और ‘अनुवाद’ को लेकर ब्लॉग की दुनिया में कुछ सार्थक काम करने की तीव्र इच्छा थी। मैंने अपना पहला ब्लॉग ही ‘अनूदित साहित्य’ पर केन्द्रित किया- “सेतु साहित्य” नाम से। लेकिन चूंकि यह मेरी परिकल्पनाओं की पूरी तरह पूर्ति नहीं कर रहा था इसलिए धीरे-धीरे मैंने कविताओं से जुड़ा “वाटिका” ब्लॉग, फिर प्रवासी भारतीय लेखकों की अभिव्यक्ति से सम्बद्ध “गवाक्ष”, साहित्य की सभी छोटी- बड़ी विधाओं से जुड़ा ब्लॉग –‘साहित्य सृजन’ और पंजाबी के श्रेष्ठ कथा साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाला ब्लॉग “कथा पंजाब” प्रारंभ किया। निसंदेह, मेरे इन ब्लॉगों में मेरे द्वारा किए गए अनुवाद को छोड़कर मेरी मौलिक रचनाएं नहीं जाती हैं। मेरे बहुत से साहित्यिक और ब्लॉग के माध्यम से बने नये मित्र बंधु गाहे-बगाहे मुझसे कहते रहे कि भाई नीरव, ब्लॉग की दुनिया के अधिकांश लोग अपने ब्लॉग्स पर अपना-अपना ही परसोते रहते हैं और तुम हो कि दूसरों के अच्छे लेखन को, उनके श्रेष्ठ साहित्य को ही अपने ब्लॉग्स में प्रमोट करते रहते हो, तुम स्वयं एक लेखक-कवि हो और तुम्हारी अपनी बहुत लम्बी लेखन-यात्रा रही है, मौलिक लेखन और अनुवाद की अनेक किताबें छपी हैं, हिंदुस्तान की कोई पत्रिका नहीं है जहाँ तुम न छ्पे हो, कहानियाँ, लघुकथाएँ, कविताएँ, समीक्षाएँ प्रिंट-मीडिया में छपती रही हैं और अब तक छ्प रही हैं, तो तुम क्यों नहीं ब्लॉग के माध्यम से स्वयं को प्रमोट करते ? अपनी रचनाएं इस नये माध्यम द्वारा विश्व के विशाल पाठक के सम्मुख रखते? तो बन्धुओ ! मेरे इस ‘सृजन-यात्रा’ ब्लॉग के निर्माण के पीछे सीधे-सीधे तो आपको यह लग सकता है कि मैंने मित्रों का आग्रह मानकर इस ब्लॉग की शुरूआत की होगी। परन्तु, मेरे भीतर जो इसका मकसद था, वो किंचित दूसरा भी था। मेरी प्रारंभिक पुस्तकें अब उपलब्ध नहीं है, एक-दो प्रति यदि उपलब्ध भी है तो वह बहुत जीर्ण-शीर्ण और जर्जर अवस्था में है। प्रकाशक उन्हें री-प्रिंट नहीं करेंगे, जानता हूँ। घर में फाइलों में, पत्रिकाओं, अख़बारों के सहेज कर रखे अंकों के पीले और नष्ट-से हो चुके पृष्टों पर मेरी रचनाएं इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। दीपावली के कुछ दिन पूर्व जब घर में साफ-सफाई होती है अथवा जब-जब मकान बदलना होता है तो मैं अपनी पत्नी और बच्चों की मदद से इनकी धूल साफ कर लेता हूँ। तो मित्रो, अपना निजी ब्लॉग अर्थात अपनी ही रचनाओं को प्रस्तुत करने वाला ब्लॉग “सृजन-यात्रा” जब बनाने की बात आई तो उसके पीछे मंशा यह भी थी कि वे इस बहाने एक जगह उपलब्ध और सुरक्षित हो सकें। दूर-दराज बैठे बहुत से पाठक जब मुझसे मेरी कोई पुरानी किताब, किसी कहानी अथवा कविता की मांग करते हैं तो मैं बेबस और उदास हो जाया करता हूँ। पुरानी किताबों की इतनी प्रतियां हैं नहीं कि उठाऊँ और पोस्ट कर दूँ। इंटरनेट पर मिली इस सुविधा के चलते यह काम मुझे बहुत सहज और सरल लगा, प्रारंभ में अवश्य श्रम-साध्य है परन्तु बाद में जब सभी रचनाएँ एक जगह समाहित हो जाएँगी तो उन्हें भेजने में अथवा पाठकों को उपलब्ध करवाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी, यही सोचकर मैंने अपना निजी/मौलिक रचना-संसार ‘सृजन-यात्रा’ में क्रमवार प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। अब जब भी समय मिलता है, मैं इस पर अपनी कोई रचना पोस्ट कर देता हूँ। नेट की दुनिया के पाठक पढ़ते हैं, अपनी टिप्पणी/राय देते हैं तो अच्छा लगता है।

साहित्य की दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा अंतर्जाल पर इस ब्लॉगिंग को लेकर अभी भी नाक-भौं सिकोड़ता है और उसकी धारणा है कि जो लोग कहीं नहीं छपते, वे अपनी छपास की भूख मिटाने के लिए अपना ब्लॉग खोल कर बैठ जाते हैं, जहाँ वे खुद ही लेखक–कवि होते हैं और खुद ही संपादक और इसी के चलते अपनी कच्ची, अधकचरी, बेसिर-पैर की रचनाएं देश-विदेश के पाठकों पर थोपते रहते हैं और अपनी रचनाओं जैसी ही कच्ची, अधकचरी टिप्पणियाँ अपने फेवर में पाकर अपने आप को एक महान लेखक-कवि के संभ्रम में जीते रहते हैं। मित्रो, हिंदी में ब्लॉगों की बेइंतहा भीड़ पर अगर नज़र डालें तो यह बात कुछ हद तक सही भी प्रतीत होती है परन्तु मेरा मानना है कि इतने भर से इस माध्यम के चलते हो रही अभिव्यक्ति पर पूरी तरह लकीर मार देना भी उचित नहीं है। क्या प्रिंट मीडिया में अब तक अच्छा, श्रेष्ठ और उत्कृष्ट ही छपता आया है। जब अंतर्जाल पर यह साधन(ब्लॉगिंग को मैं एक साधन के रूप में ही लेता हूँ) नहीं था, तब भी और आज भी मैं देखता हूँ कि बहुत से लोग अपनी-अपनी पत्रिकाएं लिए नज़र आते हैं। कुछेक को छोड़ दें तो बहुत सी अपने पहले अंक के बाद ही दम तोड़ देती हैं। इनके पीछे कोई महती और सार्थक उद्देश्य भी नहीं होता, बस पत्रिका निकालने का ख़ब्त होता है और खुद ही संपादक बनने का। अपनी और अपने खास मित्रो की रचनाएँ छापने के लिए ये स्वतंत्र होते हैं। साहित्य के नाम पर कचरा आपको वहाँ भी बहुत मिलता है और इस कचरे के ढेर तले कुछेक अच्छी पत्रिकाएं जो एक खास उद्देश्य को लेकर चलती हैं, दबकर रह जाती हैं। तो दोस्तो, ब्लॉग की दुनिया में भी ठीक वैसी ही स्थिति है। पत्रकारिता, साहित्य, अनुवाद से जुड़े बहुत से ब्लॉग हैं जो अपनी साकारात्मकता और रचनात्मकता को लेकर रेखांकित किए जा सकते हैं। उनके महत्व को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता। यहाँ नाम गिनाने की मेरी कोई मंशा नहीं है। जो लोग इस दुनिया में हैं या इससे परिचित हैं वे भलीभांति जानते ही हैं। हमें ऐसे ब्लॉग अथवा वेब पत्रिकाओं द्वारा किये जा रहे प्रयासों का खुलकर स्वागत करना होगा और साथ ही साथ उनके हौसलों को मज़बूत भी करना होगा।
-सुभाष नीरव

12 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

एकदम सही बात कही है आपने. हर रचनाकार को अपनी संपूर्ण रचनावली नेट पर लाना ही चाहिए - माध्यम चाहे ब्लॉग हो या स्वयं के डोमेन.

आखिर, एक रचनाकार लिखता किसलिए है? लोग पढ़ें इसलिए न?
और इसके लिए सर्वसुलभ सर्वत्र उपलब्ध साधन - नेट के अलावा और क्या हो सकता है भला?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ravi ratlami jee ki bat se 100 feesdi sehmat....

lekin aap pahle apne swasthya par dhyan dein..
jaan hai to jahaan hain, jis saal ke aaspaas se aapne hindi lekhan shuru kiya hai usi saal mai janma hu

;)

बलराम अग्रवाल ने कहा…

असलियत यह है कि ब्लॉग की दुनिया को जिन रचनाकारों ने साहित्यिक गरिमा प्रदान करने की सफल पहल की है, तुम्हारा नाम उनमें सम्मानपूर्वक स्थित है। कम से कम मैं तो इस क्षेत्र में तुम्हें अपना अभिभावक कह ही सकता हूँ। 'जनगाथा' को तुम्हारे जन्मदिन 27 दिसम्बर से शुरू करना भी सुखद रहा। रही बात ब्लॉग्स पर नाक-भौं सिकोड़ने वालों की। आप उनकी बात ही न करो। गर्व इस पर करो कि प्रिंटमीडिया के अनेक पत्र बेहतर ब्लॉग्स को उद्धृत करने लगे हैं। स्तरीय रचनाएँ देर से ही सही, पहचानी और चिह्नित की अवश्य जाती हैं।

अनिल जनविजय ने कहा…

मैं रवि रतलामी की बात से इत्तफ़ाक रखता हूँ। सुभाष भाई आपको धीरे-धीरे अपनी सब रचनाएँ नेट पर जोड़ देनी चाहिएँ। आपकी कविताएँ कविता कोश में और गद्य-रचनाएँ गद्यकोश में जोड़कर हम गौरवान्वित होंगे। आपने पंजाबी और हिन्दी दोनों भाषाओं के साहित्य के लिए इतना काम किया है कि आपको अब तक एक नहीं कई 'साहित्य अकादमी' मिल जाने चाहिए थे। लेकिन अंधा बाँटे रेवड़ी अपने-अपनों को दे। आप किसी अंधे से भला क्यों जुड़ेंगे। आप काम करना जानते हैं और रेवड़ी की कोई फ़िक्र नहीं करते हैं।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

प्रिय सुभाष जी आपकी बातों से मैं भी सहमत हूं। मैं स्‍वयं जो लिखता रहा हूं वह फाइलों में दबा पड़ा रहा। कुछ यहां वहां प्रकाशित हुआ है तो कुछ नहीं। इस बात को ध्‍यान में रखकर मैंने भी अपना एक ब्‍लाग गुलमोहर http://gullakapni.blogspot.com इसीलिए आरंभ किया है। फिलहाल उस पर मेरी कविताएं हैं। आपसे एक गुजारिश है हमें ऐसा कोई प्रयास भी करना चाहिए कि लोग ऐसे ब्‍लागों तक पहुंचें। बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

निस्सन्देह बात सही है। ब्लॉग्स पर गुणवत्तापूर्ण लेखन का अनुपात भी निरन्तर बढ़ रहा है। और फिर माध्यम तो कोई भी बुरा नहीं होता उसके प्रयोक्ता ही उसकी छवि गढ़ देते हैं। गम्भीर प्रयासओं में लगे ढेर सारे लोग तथाकथित पूर्वाग्रह का सटीक संहार भी कर रहे हैं। ऐसे प्रत्येक प्रयास व अवदान की प्रशंसा की ही जानी चाहिए।

परन्तु ध्यान रखिए, बन्धु! अपनी साहित्य के प्रति सावधानी कहीं स्वास्थ्य के प्रति अनवधानता न बने। वरना फ़रवरी में तो आपने दिल्ली में तोते उड़ा दिए थे हम सब के। घर वालों के आप पर अंकुश को हमारा शतश: समर्थन॥

देवमणि पाण्डेय ने कहा…

हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर आपकी बातें सचमुच विचारणीय हैं। मुझे भी लगता है कि अपनी चुनिंदा रचनाएं ब्लॉग पर ज़रूर डालनी चाहिए।

-देवमणि पाण्डेय

बेनामी ने कहा…

सुभाष जी
आपके ब्लॉग से जाना कि आप काफी बीमार थे | आपके ब्लॉग पर आपके विचारों से सहमत हूँ किन्तु कुछ समय के लिए कंप्यूटर से दूर रहें तो अच्छा | ब्लॉग लेखन काफी समय ले लेता है , यदि दूसरों को प्रकाशित करना हो तब भी |
सादर
इला

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

भाई सुभाष,

मित्रों की बातों से इत्तेफाक रखता हूं. ब्लॉग की दुनिया में तुम्हारी एक अलग पहचान है. तुमने अपने साहित्य को दरकिनार करते हुए ब्लॉग पर साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित करने की जो शुरुआत की उसका ही परिणाम है कि आज अनेक ब्लॉग वैसा ही कर रहे हैं और प्रिंट मीडिया में वर्षों रचनाएं प्रकाशित करवाने की पीड़ा से मुक्त हो रहे हैं. तुम्हारे सुझाव पर ही मैंने ’वातायन’ प्रारंभ किया और तुमने ही उसकी तकनीकी बातों से मुझे अवगत करवाया था. एक जमाने में इन्टरनेट से बचता घूमने वाला मैं तुम्हारे प्रोत्साहन से एक दिन इसका ऎसा आदी हुआ कि बस---- लेकिन मुझे लगता है तुम कुछ अधिक ही उत्साह में रहे और अभी भी हो.

इस विषय में मैं इला जी की बातों से पूरी तरह सह्यमत हूं. तुम्हें अपने स्वास्थ्य की शर्तों पर ब्लॉग नहीं करने चाहिए. कुछ दिनों के लिए इन्हें स्थगित करके भरपूर स्वास्थ्य लाभ कर लो फिर----- हम हैं तो सब कुछ है. तुम्हे याद होगा कि मैं कम से कम दस वर्षों से तुम्हे स्वास्थ्य के प्रति आगाह करता आ रहा हूं. तब से ही मैंने तुम्हे मार्निंग वॉक के लिए कहना शुरू किया--- तुम कुछ करते रहे और फिर----- जो समय ब्लॉग को देते हो उसका उपयोग कुछ समय के लिए स्वास्थ्य के लिए करो.

’रचना यात्रा’ देख लेना . डॉ० लक्ष्मीनारायण लाल पर अपना संस्मरण पोस्ट किया है----

चन्देल

सुरेश यादव ने कहा…

प्रिय नीरव जी, आपने बहुत ही जानदार विषय को उठाया है, जिस पर चर्चा करना आज के समय में आवश्यक है। ब्लॉग तो एक साधन है और जिस तरह सड़क को साधन के रूप में अपनाकर न जाने कैसे कैसे लोग उस पर से गुजरते हैं, उसी सड़क पर वे लोग भी गुजरते हैं जिनसे इतिहास बनता -बिगड़ता है। पत्रिकाएं क्या क्या घटिया नहीं छाप रही हैं और अच्छे से अच्छे लेखकों को कैसे दरकिनार कर रही हैं, फिर आप ब्लॉग से एक सीमा से अधिक आशा कैसे कर सकते हैं। इतना अवश्य है कि ब्लॉग में तमाम कूड़ा कबाड़ा होते हुए भी बहुत ही सार्थक साहित्य मिल जाएगा और पाठक भी वहाँ तक पहुंच ही जाता है। इसकी श्रेष्ठता को बनाए रखकर ब्लॉग को रचनात्मक पहचान दी जा सकती है और इस कार्य को आप तथा कुछे अच्छे रचनाकार पूरे विश्व में बखूबी करते हैं। आप को आशा भरा धन्यवाद ।

Devi Nangrani ने कहा…

Neerav ji
aapki karya kshamata ko mera naman. aapki is safal yatra ke liye sadhuwaad.

https://kathaanatah.blogspot.com ने कहा…

parvaah mat karo pyare>SAMANDAR TERI LAHREN KIS TARAH MUJHKO DUBO DENGEEN, VAHEEN SE PHIR MAIN UBHROONGA, JAHAAN GEHRAAIYAAN HONGEEN.aur mera ek sher hai>APNA TO KAM HAI JALATE CHALO CHIRAGH, RASTE MAYN KHWAAH DOST YA DUSHMAN KA GHAR MILE...tUMHARI KAVITA MAYN EK SHABD HAI>luft>ISE SUDHAR LO.SHABD HAI>lutf.