बेहतर दुनिया का सपना देखते लोग
सुभाष नीरव
बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग इस दुनिया में
जो चढ़ते सूरज को करते हैं नमस्कार
जुटाते हैं सुख-सुविधाएँ और पाते हैं पुरस्कार।
बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग
जो देख कर हवा का रुख चलते हैं
जिधर बहे पानी, उधर ही बहते हैं।
बहुत अधिक गिनती में हैं ऐसे लोग
जो कष्टों-संघर्षों से कतराते हैं
करके समझौते बहुत कुछ पाते हैं।
कम नहीं है ऐसे लोगों की गिनती
जो पाने को प्रवेश दरबारों में
अपनी रीढ़ तक गिरवी रख देते हैं।
रीढ़हीन लोगों की इस बहुत बड़ी दुनिया में
बहुत कम गिनती में हैं ऐसे लोग जो-
धारा के विरुद्ध चलते हैं
कष्टों-संघर्षों से जूझते हैं
समझौतों को नकारते हैं
अपना सूरज खुद उगाते हैं।
भले ही कम हैं
पर हैं अभी भी ऐसे लोग
जो बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं
और बचाये रखते हैं अपनी रीढ़
रीढ़हीन लोगों की भीड़ में।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
सुभाष नीरव
बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग इस दुनिया में
जो चढ़ते सूरज को करते हैं नमस्कार
जुटाते हैं सुख-सुविधाएँ और पाते हैं पुरस्कार।
बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग
जो देख कर हवा का रुख चलते हैं
जिधर बहे पानी, उधर ही बहते हैं।
बहुत अधिक गिनती में हैं ऐसे लोग
जो कष्टों-संघर्षों से कतराते हैं
करके समझौते बहुत कुछ पाते हैं।
कम नहीं है ऐसे लोगों की गिनती
जो पाने को प्रवेश दरबारों में
अपनी रीढ़ तक गिरवी रख देते हैं।
रीढ़हीन लोगों की इस बहुत बड़ी दुनिया में
बहुत कम गिनती में हैं ऐसे लोग जो-
धारा के विरुद्ध चलते हैं
कष्टों-संघर्षों से जूझते हैं
समझौतों को नकारते हैं
अपना सूरज खुद उगाते हैं।
भले ही कम हैं
पर हैं अभी भी ऐसे लोग
जो बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं
और बचाये रखते हैं अपनी रीढ़
रीढ़हीन लोगों की भीड़ में।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
17 टिप्पणियां:
सच कहा आपने
बहुत कम हैं जो
सच को कह पाते हैं
उनसे भी कम हैं
जो सच को सह पाते हैं
अधिकांश तो
स्वार्थ और झूठ की
बाढ़ में बह जाते हैं.
रोशनी की लकीर
बनते और बनाते हैं
वही जो
सच को गह पाते हैं.
*
मन में उतरती आपकी रचना हेतु साधुवाद. प्रतिक्रिया में प्रगटीं पंक्तियाँ तेरा तुझको अर्पण के भाव सहित आपको समर्पित हैं.
सचमुच में धारा के विरुद्ध चलने वाले लोग घटते जा रहे है । दुनिया फिर भी बेहतर है , सिर्फ़ इन्हीं के बल पर ।
भावनाओं के नीड़ में तिनका-तिनका चुनती हुई यथार्थ पर टिकी यह कविता सुन्दर बन पड़ी है |
सुधा भार्गव
इन रीढ़हीन लोगों के बीच जो बहुत कमलोग बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं .....
इनमें से एक आप भी हैं .......
आपका वो मृदु स्वभाव भूलते नहीं भूलता .....
जो कुछ पलों की मुलाकात में मैंने अनुभव किया ......!!
दुनिया में मूल्य आखिरकार रीढ़दारों की बदौलत ही कायम हैं मेरे दोस्त! और उन्हीं की बदौलत यह दुनिया भी। बहुत अच्छी कविता है--सार्थक और सकारात्मक।
Aapkee ek aur dil mein utartee
huee kavita hai.Badhaaee.
तुम्हारे कविता संग्रह में पहले ही पढ़ी थी इस कविता को लेकिन पुनः पढ़कर इसकी सार्थकता साकार हो उठी.
बहुत सुन्दर कविता.
चन्देल
कुछ तो हैं जिनकी रीढ़ अभि बची है..उसी पर दुनिया टिकी है ...
अच्छी संदेशात्मक रचना
safaltaon aur safal logon se parichit karane aur aankhen kholne ke liye dhanyavaad
SUBHASH JEE, AAP KEE PANKTIYA
.....JO DEKHKAR HAVA KAA RUKH ...UDHAR HEE BAHTE HAIN..
AUR SAKHI PAR PRAKAASHIT OM PRAKAASH NADEEM KEE GAZAL KA EK SHER ...
हवा के रुख बदलने की खबर उड़ने से पहले ही
वो अपना रुख बदलने के लिए तैयार मिलता है
YAH EK TARAH KAA SOCH BATATA HAI KI REEDH VAALE LOG BHEE HAIN. UNHEN EK-DOOSARE SE MILATE-JULATE RAHANE KEE JAROORAT HAI. MAIN CHAAHOONGA KI AAP NADEEM SAAHAB KEE GAZLEN PADHEN ....
www.sakhikabira.blogspot.com
सही कहा...बहुत कम लोग हैं ऐसे...पर हैं...
सुन्दर रचना...
नीरव जी आप को इस कविता के लिए बधाई.इस लिए भी बधाई कि सच्चाई को बेबाकी से बयां किया है ,लगता है जैसे इसे जिया है.
अच्छी रचना.. इस तरह के लोग कम हैं, पर हैं यही संतोष की बात है
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
हैपी ब्लॉगिंग
बिलकुल सही कहा आपने बहुत बडी गिनती है ऐसे लोगों की जो अपना सूरज खुद उगाते हैं। सटीक रचना बधाई।
अंतिम पंक्तियों ने आत्मा को झकझोर कर रख दिया..बेहतरीन रचना। ...आभार।
बहुत ही सुन्दर भाव...
अच्छे लोगों के सहारे ही हम जी रहे हैं ...वरना दुनिया का अन्त कब का हो गया होता ।
आपका कविता संग्रह पढ़ना चाहती हूँ ।
ek sachchi kavita.bahot sunder.
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