अपने-अपने रास्ते
सुभाष नीरव
छोड़ कर सीधे-सरल रास्ते
वह उतरा घाटियों में
चढ़ा पर्वतों पर।
सीधे-सरल रास्तों ने
बहुत लुभाया उसे
पर उसने चुनीं
चुनौती भरी राहें।
दुर्गम घाटियों में उतर कर
वह सुनता रहा उनका संगीत
और खोजता रहा
गहराइयों का सच।
न जाने किस गहरे दु:ख में
ख़ामोश खड़े थे पहाड़
वह ढूँढ़ता रहा
उनकी ख़ामोशियों के अर्थ।
पत्थरों-चट्टानों
नदी, नालों और निर्झरों
फूलों और कांटों को लांघता
जब वह पहुँचा मंज़िल पर
उसके पास थी
ढेर सारे अनुभवों की पूंजी।
पर लोग तो वहाँ
पहले से ही मौजूद थे
जो सीधे-सरल रास्तों से हो कर आए थे
और किए जा रहे थे पुरस्कृत।
खुश थे अपनी सफलता पर
जिस समय
पुरस्कृत हुए लोग
वह बढ़ रहा था
चुपचाप
नई मंज़िल
नई चुनौतियों की तलाश में।
0
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
सुभाष नीरव
छोड़ कर सीधे-सरल रास्ते
वह उतरा घाटियों में
चढ़ा पर्वतों पर।
सीधे-सरल रास्तों ने
बहुत लुभाया उसे
पर उसने चुनीं
चुनौती भरी राहें।
दुर्गम घाटियों में उतर कर
वह सुनता रहा उनका संगीत
और खोजता रहा
गहराइयों का सच।
न जाने किस गहरे दु:ख में
ख़ामोश खड़े थे पहाड़
वह ढूँढ़ता रहा
उनकी ख़ामोशियों के अर्थ।
पत्थरों-चट्टानों
नदी, नालों और निर्झरों
फूलों और कांटों को लांघता
जब वह पहुँचा मंज़िल पर
उसके पास थी
ढेर सारे अनुभवों की पूंजी।
पर लोग तो वहाँ
पहले से ही मौजूद थे
जो सीधे-सरल रास्तों से हो कर आए थे
और किए जा रहे थे पुरस्कृत।
खुश थे अपनी सफलता पर
जिस समय
पुरस्कृत हुए लोग
वह बढ़ रहा था
चुपचाप
नई मंज़िल
नई चुनौतियों की तलाश में।
0
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
8 टिप्पणियां:
SUBHASH JEE,
AAPKEE NAYEE KAVITA"APNE-
APNE RASTE"KEE KYA BAAT HAI!
PRATIBADDH AUR SAMARPIT LOGON KAA
DYEY TO KEWAL APNE LAKSHYA KO PRAPT
KARNA HAI.KHOOB KAHAA HAI AAPNE--
JIS SAMAY PURUSHKRIT HUE LOG
VAH BADH RAHAA THAA
CHUPCHAAP
NAYEE MANZIL
NAYEE CHUNAUTIYON KEE
TALAASH MEIN
खुश थे अपनी सफलता पर
जिस समय
पुरस्कृत हुए लोग
वह बढ़ रहा था
चुपचाप
नई मंज़िल
नई चुनौतियों की तलाश में।
आज के पुरस्कारों का सच और सची लेखक की अभिव्यक्ति को दर्शाती एक खूबसूरत रचना बधाई
kahin bahut gehra dard chhupa hai is rachna mein..
सुभाष नीरव की कविता अपने-अपने रास्ते समय के सच का बयान करती है और जीवन में संघर्ष का निदेश भी। जो चुनौतियों से घबराते नहीं और अपने लक्ष्य पर आरूढ़ होते हैं उनके लिये यह कविता संबल और उर्जा देती है। बधाई इस सुन्दर कविता के लिये।
यार पहले भी इसे पढ़ी थी, लेकिन अब पढ़कर नये अर्थ खुले. बहुत खूबसूरत कविता.
चन्देल
Dear Neerav Ji !
I enjoyed your poetry !
I'm indeed thankful to you for keeping in touch.
Regards
Vigyan Vrat
vigyanvrat@yahoo.com
नीरव जी
आपकी कवितायेँ दर्द से भीजी हुई हद से सरकती हुई सरहदों की और अपने वजूद की तलाश में निकली है जैसे.
न जाने किस गहरे दु:ख में
ख़ामोश खड़े थे पहाड़
वह ढूँढ़ता रहा
उनकी ख़ामोशियों के अर्थ।
देवी नागरानी
बहुत ही प्रभावित करती कविता
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