नदी
सुभाष नीरव
पर्वत शिखरों से उतर कर
घाटियों-मैदानों से गुजरती
पत्थरों-चट्टानों को चीरती
बहती है नदी।
नदी जानती है
नदी होने का अर्थ।
नदी होना
बेरोक निरंतर बहना
आगे…आगे… और आगे।
कहीं मचलती
कहीं उद्विग्न, उफनती
किनारे तोड़ती
कहीं शांत-गंभीर
लेकिन –
निरंतर प्रवहमान।
सागर से मिलने तक
एक महायात्रा पर होती है नदी।
नदी बहती है निरंतर
सागर में विलीन होने तक
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी !
0
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
सुभाष नीरव
पर्वत शिखरों से उतर कर
घाटियों-मैदानों से गुजरती
पत्थरों-चट्टानों को चीरती
बहती है नदी।
नदी जानती है
नदी होने का अर्थ।
नदी होना
बेरोक निरंतर बहना
आगे…आगे… और आगे।
कहीं मचलती
कहीं उद्विग्न, उफनती
किनारे तोड़ती
कहीं शांत-गंभीर
लेकिन –
निरंतर प्रवहमान।
सागर से मिलने तक
एक महायात्रा पर होती है नदी।
नदी बहती है निरंतर
सागर में विलीन होने तक
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी !
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
19 टिप्पणियां:
Bahut achi lagi ye rachna ...bahut-bahut badhai ..apni helth ka khyal rakhiyega..
नदी बहती है निरंतर
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी
आप ने एक हकीकत लिखी है. जब तक सांस है तब तक जीवन है. नदी के प्रवाह और इंसान के जीवन में बहुत कुछ समानताएं हैं. बहुत बधाई.
SUBHASH JEE,
BAHUT KHOOB! SHABD AUR
BHAAV SAB ACHCHHE HAIN.ANTIM
PANKTIYAN KITNEE SAARTHAK HAIN-
KYONKI
VAH JAANTEE HAI
VAH BAHEGEE
TO RAHEGEE
'नदी' कविता में नदी जैसी ही गहराई है ।बहुत प्रभावशाली कविता है ।
Bhai,
Bahut sundar kavita hai. Khubsurat drishya prastuta karati.
Badhai.
Chandel
और बहना ही रहना है।
कहते रहना ही बहना और बहते रहना ही जीवन है-वाह!
सुंदर कविता है।
पर सुभाष जी,
अब नदी कहां बहती है
जब वह रहती है तो
कहती है
वरना वह सीता की तरह
समा गई है जहां तहां
धरती के सीने में ।
नदी कविता एक खूबसूरत अहसास है ! बहेगी तो ही रहेगी -कविता का सुन्दरतम निचोड़ !
बधाई !
Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com
bahut hi prabhavshali avam sashkt rachna.
poonam
thik kaha aapne.............nadi janti hain nadi hone ka arth
kitni gahrayi h is kavita me lavj -2 me dard chipa h
istre bhi too ek nadi hi hain neerav ji
take care
Anjana Bakshi
anjanajnu5@yahoo.co.in
भाई नीरव जी,नदी के माध्यम से जिंदगी की राह बयान कराती यह कविता सुन्दर है.
आदरणीय प्राण साहिब, काम्बोज जी,भाई नरेश, चन्देल, बलराम अग्रवाल,सुरेश यादव,अविनाश तथा भावना जी, पूनम जी, अंजना जी, मैं आप सबका आभारी हूँ कि आपने वक्त निकाल कर मेरी "नदी" कविता को पढ़ा और अपने विचार प्रकट किये। नि:संदेह आपके विचार मेरे अन्दर नई स्फूर्ति और आत्मशक्ति पैदा करने के साथ साथ और बेहतर लिखने हेतु प्रेरित करने के लिए पर्याप्त हैं। पुन: आभार !
Very fine poem.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
Man may come and man may go but I go on for ever.
नदी बहती है निरंतर
क्योंकि वह जानती है
वह बहेगी
तो रहेगी|
नदी जीवन है
और कविता भी।
कविता भी|
सुभाष जी, आपके अन्दर का कवि जीवित है , सूजन शील है। शुभकामनाएँ!
इला
यूँ ही कुछ तलाशते हुए आपकी कविताएं सामने आगईं ।कविताएं पढते हुए सचमुच लगा कि कपाट खोल कर एक रोशनी की लकीर उतर रही है ।
wonderful lines - woh bahegi, toh rahegi!
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