मित्रों, पिछले कुछ माह से घर-परिवार और कार्यालयी उलझनों, परेशानियों के चलते तथा आँख के आप्रेशन के कारण अपने ब्लॉग ‘सृजन-यात्रा’ पर ही नहीं अपितु अपने अन्य ब्लॉगों पर भी ध्यान नहीं दे पाया। स्थितियाँ कुछ बेहतर हुईं तो आज छूटे हुए कामों को पूरा करने का यत्न कर रहा हूँ। ‘सृजन-यात्रा’ में अपनी कुछ कहानियों के बाद कविताओं के प्रकाशन का सिलसिला मैंने आरंभ किया था। इस पोस्ट में अपनी कविता ‘कविता मेरे लिए’ इसलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ कि दीपावली का शुभ-पर्व करीब है और मेरी इस कविता में ‘शब्दों’ को ‘रौशनी’ बनाने की बात आई है। इस कविता को आप सबके सम्मुख दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ रख रहा हूँ…
कविता मेरे लिए
सुभाष नीरव
कविता की बारीकियाँ
कविता के सयाने ही जाने।
इधर तो
जब भी लगा है कुछ
असंगत, पीड़ादायक
महसूस हुई है जब भी भीतर
कोई कचोट
कोई खरोंच
मचल उठी है कलम
कोरे काग़ज़ के लिए।
इतनी भर रही कोशिश
कि कलम कोरे काग़ज़ पर
धब्बे नहीं उकेरे
उकेरे ऐसे शब्द
जो सबको अपने से लगें।
शब्द जो बोलें तो बोलें
जीवन का सत्य
शब्द जो खोलें तो खोलें
जीवन के गहन अर्थ।
शब्द जो तिमिर में
रौशनी बन टिमटिमाएँ
नफ़रत के इस कठिन दौर में
प्यार की राह दिखाएँ।
अपने लिए तो
यही रहे कविता के माने।
कविता की बारीकियाँ तो
कविता के सयाने ही जाने।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
24 टिप्पणियां:
जी वैसे मायने मुझे भी नहीं पता ..वो सयाने ही जाने ...आपकी रचना अपनी सी लगी
SUBHASH JEE , AAPKEE KAVITA KHOOB
HAI ! BAHUT HEE KHOOB !! YE PANKTIYAN AAPKEE LEKHNEE SE NIKAL
SAKTEE THEEN
SHABD JO BOLEN TO BOLEN
JEEWAN KAA SATYA
SHABD JO KHOLEN TO KHOLEN
JEEWAN KE GAHAN ARTH
MAINE KABHEE GAZAL LIKHEE
THEE . USKAA MATLA PADHIYEGA -
JYON QATRA PANI HOTA HAI
HAR SHABD KAHANI HOTA HAI
sundar rachna!
shabd brahm hote hain....
raushan kare kore kagaz ka sansaar!
likh jaaye sanchit sanskaar!!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
भाई नीरव जी आपने सही कहा है । कविता तो सहज भावों , विचारों और कल्पनाओं की अभिव्यक्ति है । चतुर सयाना कुछ और हो सकता है , कवि कदापि नहीं । अच्छी कविता के लिए हार्दिक बधाई !
कविता की बारीकियाँ तो वाकई सयाने ही जानें। हम तो बस इतना जानते हैं कि जो कविता दिल में उजाला-सा भर दे, अपनी अभिव्यक्ति-सी लगे, वह कविता अच्छी है। यह कविता ऐसी ही है।
दीप पर्व की शुभकामनाएं ! कविता हमारे ज़ह़्न को रोशन कर गई! बधाई !
Subhash ji
bahut bareekiyon se bareekiyon ka jikr hua....
sundar !
aaapke uttam swasthy ke liye mangal kamnayen
Deepawalii ke bhe shubhkamnayen !
कविता को भाव से ही जाना जा सकता है |आपने बिल्कुल सत्य कहा है |इसे परिभाषित कर ,इसे किसी सीमा में बाँध कर नहीं रखा जा सकता |बहुत अच्छी प्रस्तुति |आभार
आशा
सुन्दर कविता ! बहुत समय बाद आपको ब्लॉग पर उपस्थित पा कर हर्ष हुआ | दीप पर्व की मंगलकामनाएं! दिवाली के दीये कलम में ही नहीं, जीवन में भी उजाला भरे !
सादर
इला
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
नीरव जी आपने सही कहा है अच्छी कविता के लिए हार्दिक बधाई !
belaag baat... kavita ko sayane naheen samajhdar hee samajhte hain. badhaee.
शब्दो की सार्थकता वाकई जीवन के गहन सत्यों को उजाला बन तिमिर की कैद से निकाल कर उन्हें अर्थों का नया आयाम देने में है. बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
कविता पढ़ी,गहराई तक रोशनाई हुई,बधाई|
सुधा भार्गव
आपकी कविता के शब्दों की रोशनी ने मन के आंगन को जगमगा दिया। दीपावली के शुभ अवसर पर आपको भी हार्दिक बधाई!
प्रणाम !
'' शब्द जो बाले तो बाले
जीवन का सत्य ...''
उक्त पंक्तिया आप को नज़र करता हूँ . बहुत कुछ छिपा है इन पंक्तियों में , इक गूढ़ भाव . इक दर्शन . सुंदर रचना है . बधाई .
साधुवाद
सादर !
ekdam sahi likha hai aapne.
विलंब से प्रतिक्रिया दे रहा हूं. यार बहुत ही सटीक और सुन्दर बात कही. कविता ने मन मोह लिया.
बधाई.
चन्देल
सुभाष जी ,
आपको याद ही कर रही थी कि आप आ गए .....
ये आँखें भी बहुत परेशान करती हैं ....जवानी अलग तो बुढ़ापे में अलग .....
रौशनी की लकीर है मेरे पास आपकी दी हुई ....
कुछ नज्में तो बहुत ही अच्छी हैं ...
आदमी की फितरत ,लडती है रोज़ एक औरत आग से , ठोकरें आदि ...
बहुत करीब से गुजरी रचना!
इस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
कविता जो जीवन का अर्थ खोले
सभी कविताएं पढ गया। आम अनुभवो। से ओतप्रोत जन जन को छूने वाली
भगीरथ
भाव और भाषा का प्रवाह दोनों ही अत्यन्त प्रभावशाली हैं, कितने सहज और सरल शब्दों में इतनी गहरी बात व्यक्त हो गयी. .... बारीकियों को ध्यान में रख कर तो विवेचना की जाती है , कविता नहीं लिखी जाती, सही कहा आपने, जब भी कुछ दिल को छूता है तो भावोँ की नदी कविता बनकर उमड़ती है कोरे कागज़ पर... मै बलराम जी की बात से पूर्णतया सहमत हूँ, "जो कविता दिल में उजाला-सा भर दे, अपनी अभिव्यक्ति-सी लगे, वह कविता अच्छी है। यह कविता ऐसी ही है।"
सादर
मंजु
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