परिन्दे
सुभाष नीरव
परिन्दे
मनुष्य नहीं होते।
धरती और आकाश
दोनों से रिश्ता रखते हैं परिन्दे।
उनकी उड़ान में है अनन्त व्योम
धरती का कोई टुकड़ा
वर्जित नहीं होता परिन्दों के लिए।
घर-आँगन, गाँव, बस्ती, शहर
किसी में भेद नहीं करते परिन्दे।
जाति, धर्म, नस्ल, सम्प्रदाय से
बहुत ऊपर होते हैं परिन्दे।
मंदिर में, मस्जिद में, चर्च और गुरुद्वारे में
कोई फ़र्क नहीं करते
जब चाहे बैठ जाते हैं उड़कर
उनकी ऊँची बुर्जियों पर बेखौफ!
कर्फ्यूग्रस्त शहर की
खौफजदा वीरान-सुनसान सड़कों, गलियों में
विचरने से भी नहीं घबराते परिन्दे।
प्रांत, देश की हदों-सरहदों से भी परे होते हैं
आकाश में उड़ते परिन्दे।
इन्हें पार करते हुए
नहीं चाहिए होती इन्हें कोई अनुमति
नहीं चाहिए होता कोई पासपोर्ट-वीज़ा।
शुक्र है-
परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
मनुष्य की तरह धरती पर।
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सुभाष नीरव
परिन्दे
मनुष्य नहीं होते।
धरती और आकाश
दोनों से रिश्ता रखते हैं परिन्दे।
उनकी उड़ान में है अनन्त व्योम
धरती का कोई टुकड़ा
वर्जित नहीं होता परिन्दों के लिए।
घर-आँगन, गाँव, बस्ती, शहर
किसी में भेद नहीं करते परिन्दे।
जाति, धर्म, नस्ल, सम्प्रदाय से
बहुत ऊपर होते हैं परिन्दे।
मंदिर में, मस्जिद में, चर्च और गुरुद्वारे में
कोई फ़र्क नहीं करते
जब चाहे बैठ जाते हैं उड़कर
उनकी ऊँची बुर्जियों पर बेखौफ!
कर्फ्यूग्रस्त शहर की
खौफजदा वीरान-सुनसान सड़कों, गलियों में
विचरने से भी नहीं घबराते परिन्दे।
प्रांत, देश की हदों-सरहदों से भी परे होते हैं
आकाश में उड़ते परिन्दे।
इन्हें पार करते हुए
नहीं चाहिए होती इन्हें कोई अनुमति
नहीं चाहिए होता कोई पासपोर्ट-वीज़ा।
शुक्र है-
परिन्दों ने नहीं सीखा रहना
मनुष्य की तरह धरती पर।
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28 टिप्पणियां:
परिन्दों ने नही सीखा मनुष्य की तरह धरती पर रहना....
बहुत सुन्दर.
बहुत सुन्दर रचना
परिन्दे नहीं टिकते धरती पर
देख लिया होगा इंसानों की दरिन्दगी
बहुत खूबसूरत रचना ...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
KAVITA PRABHAAVSHALEE HAI.KAVITA
PADH KAR MUJHE APNEE GAZAL KAA
MATLAA YAAD AA GAYAA HAI --
UDTE HAIN HAZARON AAKASH MEIN PANCHHEE
OONCHEE NAHIN HOTEE PARWAAZ
HARIK KEE
अपहृत सीता को बचाने के लिए रावण से जूझने वाला पहला प्राणी 'जटायु' एक परिंदा ही था। इसलिए केवल निरीह और असहाय भी नहीं होते हैं परिंदे। बहुत अच्छी कविता लिखी है।
बहुत सुन्दर रचना...बधाई...।
प्रियंका
www.priyankakedastavez.blogspot.com
बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त की है परिंदों की जिंदगी!!!!
मानव जीवन कई विवशताओं से जुड़ा है , परिंदों सी किस्मत कहाँ यहाँ!
शुक्र है
परिन्दों ने नही सीखा
मनुशःय की तरह रहना।
बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना
बधाई।
बधाई,सुन्दर कविता के लिए। सुभाष जी परिन्दे कई मायने मे आदमी से बेहतर होते है
।
परिंदों के माध्यम से अपने आस पास के परिवेश में मौजूद विसंगतियों और कटु सच्चाईयों से रू-ब-रू कराती, भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति, जो किसी को भी सोचने के लिए विवश कर दे. आभार.
सादर,
डोरोथी.
मंदिर में ,मस्जिस में , चर्च और गुरूद्वारे में
कोई फर्क नहीं करते परिंदे ....
बहुत खूब ....सुभाष जी ...
सच्च हमें परिंदों से सीख लेनी चाहिए ....!!
बेजोड़ रचना । इस रचना को पढ़ने का सौभाग्य हमारे छात्रों को भी मिल रहा है ।
भाई, बहुत सुन्दर कविता है. मनुष्येतर प्राणी मनुष्य के साथ रहकर भी उस जैसा नहीं बन पाते.
परिन्दों को माध्यम बनाकर तुमने बहुत बड़ी बात कह दी है.
चन्देल
नहीं सीखा परिंदों ने इनसान की तरह रहना ...
इसलिए ही तो मुक्त आकाश है उनके लिए ...
सुन्दर अभिव्यक्ति !
bahut sundar rachna...
subhash jee
pranam !
achchi abhivyakti achchi rachna hume padhwane k liye aap ka aabhar sadhuwad ,
saadar
स्वच्छन्दता का सही मतलब जानते हैं परिंदे। इसीलिए खौफ और सीमाओं से परे उसका पूरा आनंद ले पाते हैं। सुन्दर कविता।
प्रणाम,बहुत अच्छी कविता है
सुन्दर कविता के लिए बधाई हो नीरव जी .
priya bhai subhash jee aapki yeh kavitaa bahut prabhavshali hai man par gehraa prabhav chhodtii hai, vakeii-
prindo ne nahiin seekha rehnaa
manushya kii tarah dhartii par.
iss bahut sundar abhivyakti ke liye badhai.
बहुत बड़ी और खरी बात कह दी आप ने...। मेरी बधाई...।
www.manikahashiya.blogspot.com
वपरिन्दों ने नही सीखा मनुष्य की तरह धरती पर रहना....
काश आगे भी न सीखें ...
vah...vah aur vaaaa...h.
vaah..bahut sundar kavita hai,badhai
नहीं सीखा परिंदों ने इनसान की तरह रहना
बहुत सुंदर कविता के लिए बधाई...।
Dear Subhashji
Namaskar.
Parende kavita bahut hi achhi lagi ,dusri dono kavitayen bhi achi hai par parende bahut kuchh kahti hai jo aaj ke dour ka satye hai.
Shubhkamnayon ke saath,
Dr.Anjana Sandhir
काश !! हम मनुष्य कुछ सीख लेते इन परिंदों से....
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