बधाइयों की भीड़ में चिंतामग्न अकेला व्यक्ति
सुभाष नीरव
'जब न मिलने के आसार बहुत हों
जो मिल जाए, वही अच्छा है'
एक अरसे के बाद
सुनने को मिलीं ये पंक्तियाँ
उनके मुख से
जब मिला उन्हें लखटकिया पुरस्कार
उम्र की ढलती शाम में
उनकी साहित्य-सेवा के लिए ।
मिली बहुत-बहुत चिट्ठियाँ
आए बहुत-बहुत फोन
मिले बहुत-बहुत लोग
बधाई देते हुए।
जो अपने थे
हितैषी थे, हितचिंतक थे
उन्होंने की जाहिर खुशी यह कह कर
'चलो, देर आयद, दुरस्त आयद
इनकी लंबी साधना की
कद्र तो की सरकार ने ...
वरना
हकदार तो थे इसके
कई बरस पहले ... ।'
जो रहे छत्तीस का आंकड़ा
करते रहे ईर्ष्या
उन्होंने भी दी बधाई
मन ही मन भले ही वे बोले
'चलो, निबटा दिया सरकार ने
इस बरस एक बूढ़े को ...'
बधाइयों के इस तांतों के बीच
कितने अकेले और चिंतामग्न रहे वे
बत्तीस को छूती
अविवाहित जवान बेटी के विवाह को लेकर
नौकरी के लिए भटकते
जवान बेटे के भविष्य की सोच कर
बीमार पत्नी के मंहगे इलाज, और
ढहने की कगार पर खड़े छोटे से मकान को लेकर ।
जाने से पहले
इनमें से कोई एक काम तो कर ही जाएँ
वे इस लखटकिया पुरस्कार से
इसी सोच में डूबे
बेहद अकेला पा रहे हैं वे खुद को
बधाइयों की भीड़ में ।
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सुभाष नीरव
'जब न मिलने के आसार बहुत हों
जो मिल जाए, वही अच्छा है'
एक अरसे के बाद
सुनने को मिलीं ये पंक्तियाँ
उनके मुख से
जब मिला उन्हें लखटकिया पुरस्कार
उम्र की ढलती शाम में
उनकी साहित्य-सेवा के लिए ।
मिली बहुत-बहुत चिट्ठियाँ
आए बहुत-बहुत फोन
मिले बहुत-बहुत लोग
बधाई देते हुए।
जो अपने थे
हितैषी थे, हितचिंतक थे
उन्होंने की जाहिर खुशी यह कह कर
'चलो, देर आयद, दुरस्त आयद
इनकी लंबी साधना की
कद्र तो की सरकार ने ...
वरना
हकदार तो थे इसके
कई बरस पहले ... ।'
जो रहे छत्तीस का आंकड़ा
करते रहे ईर्ष्या
उन्होंने भी दी बधाई
मन ही मन भले ही वे बोले
'चलो, निबटा दिया सरकार ने
इस बरस एक बूढ़े को ...'
बधाइयों के इस तांतों के बीच
कितने अकेले और चिंतामग्न रहे वे
बत्तीस को छूती
अविवाहित जवान बेटी के विवाह को लेकर
नौकरी के लिए भटकते
जवान बेटे के भविष्य की सोच कर
बीमार पत्नी के मंहगे इलाज, और
ढहने की कगार पर खड़े छोटे से मकान को लेकर ।
जाने से पहले
इनमें से कोई एक काम तो कर ही जाएँ
वे इस लखटकिया पुरस्कार से
इसी सोच में डूबे
बेहद अकेला पा रहे हैं वे खुद को
बधाइयों की भीड़ में ।
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20 टिप्पणियां:
बहुत गंभीर कविता.. सुन्दर..
सुभाष भाई बात कुछ बनी नहीं।
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE .SOCHNE PAR VIVASH
KARTEE HAI . SEEDHE - SAADE
SHABDON MEIN KAVITA BAHUT KUCHH
KAH GAYEE HAI . BADHAAEE .
सत्तर-अस्सी के दशक में लिखी कविता प्रतीत होती है। इन दिनों तो लखटकिया पुरस्कार इतने साधनहीन कवि को शायद ही घोषित हो।
बहुत बढ़िया रचना है। कुछ ऐसा है जो कवि के मन पर प्रहार कर रहा है।
अच्छी कविता, तीखा कटाक्ष। बहुत-बहुत बधाई नीरव जी।
यह एक भारतीय लेखक का सच्चा दर्द है...।
एक अनछुए से पहलू को बड़ी खूबसूरती से शब्दों में ढाला है...मेरी बधाई...
क्या कहू कविता के बारे में , अभिव्यक्ति ,साहित्यकार का दर्द बया कर रही है या मनो स्थिति ,
SADHUWAD
सोचने के लिए विवश करता सच....यह सच केवल एक ही साहित्यकार का नहीं, जिसे व्यवस्था और संस्थाओं ने भुला दिया बल्कि अनेकों का है. बलराम की बात सच नहीं, क्योंकि उन दिनों भी ऎसा ही होता था और आज भी,हां तब इतने जुगाड़ू नहीं थे--- आज लिखने से पहले रचनाकार जुगाड़ भिड़ाना शुरू कर देते है. आगे आगे देखिए होता है क्या---- एक पूरी पीढ़ी पूरे जोशो-खरोश के साथ इसी काम में जुटी हुई है.
खुदा खैर करे तुम्हारे पात्र जैसे रचनाकारों की.
चन्देल
नीरव जी की कविता पुरुस्कारों पर बहस को निमंत्रण नहीं देती है ,देती है एक सवाल कि चिंता के गाढे समुद्र में खुशियों लदी पुरूस्कार की नाव कैसे पलट जाती है .नीरव जी को बधाई .बलराम अग्रवाल की टिप्पड़ी एक मार्मिक व्यंग्य है जो कविता की संवेदना को गहरा जाता है .
समर्पित साहित्यकार की व्यथा को बहुत बेहतर ढंग से उकेरा गया है । पुरस्कारों की यही सरकारी विडम्बना है कि जब तक साहित्यकार यमद्वार की ओर पग बढ़ाने लायक नहीं होता , तब तक संस्थाएँ नहीं चेत पातीं।
भारतीय लेखक का दर्द बहुत संतुलित शब्दों मे ब्यां किया है। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
बहुत बार रोटी-बेटी के लिए पिसते एक प्रतिभाशाली लेखक की व्यथा का , हमारे समाज में भ्रष्टाचार के चलते सच्चे प्रतिभावान लेखकों को महत्व न दिए जाने की विडम्बना का बड़ा सशक्त चित्रण किया है आपने...।
इसके लिए मेरी बधाई स्वीकारें...।
कलमकार का दर्द व्यक्त करती...
जीवन के उलझनों से गुजरती गहन रचना!
Very nice! Very true ! Very touching poetry.
बहुत ही दर्द व्यक्त करती.कविता .....
बहुत ही दर्द भरा है आपके शब्दों में...
मन को छू गया हर शब्द !
प्रतिभावान लेखकों को समय पर महत्व न दिए जाने की विडम्बना का बड़ा ही सच्चा चित्रण किया है इस कविता में । यह एक मात्र कविता ही नहीं एक दर्द भरे दिल की अवाज़ है जिस को आपकी कलम हमारे सामने लेकर आई है !
... saarthak va saargarbhit rachanaa !!!
Bahut sunder likha hain.
दिल को छूती एक बहुत ही मार्मिक रचना..
सादर
मंजु
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