![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqJUXmkq2qH7YhQD6Fqw0L1xaz7uNeWBEGJgIJysO27Giic2FWkrjN8hEah5avlxatEoQzcYLp6yXyE7OnrhNhpU-36mQ1jRWZ0xXtw0XO0J0P3r41FcZK-Xwnmj2AyVSjozIbl-pbaxIW/s200/Kites.jpg)
धारा के विरुद्ध
सुभाष नीरव
बने बनाये साँचों में ढलना
बहुत आसान होता है
कठिन होता है
अपने लिए अलग साँचा बनाना
और खुद को उसमें ढालना
ऐसा करके देखो-
अलग दिखोगे।
धारा के साथ
हर कोई बह सकता है
कठिन होता है
धारा के विरुद्ध तैरना
तैर कर देखो-
अलग दिखोगे।
पतंग जब तक
हवा के साथ होती है
उड़ती है पर
ऊँचाइयाँ नहीं छूती
होती है जब
हवा के विरुद्ध
उठती है ऊपर, बहुत ऊपर
और दीखती है
सबसे अलग आकाश में !
0
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
सुभाष नीरव
बने बनाये साँचों में ढलना
बहुत आसान होता है
कठिन होता है
अपने लिए अलग साँचा बनाना
और खुद को उसमें ढालना
ऐसा करके देखो-
अलग दिखोगे।
धारा के साथ
हर कोई बह सकता है
कठिन होता है
धारा के विरुद्ध तैरना
तैर कर देखो-
अलग दिखोगे।
पतंग जब तक
हवा के साथ होती है
उड़ती है पर
ऊँचाइयाँ नहीं छूती
होती है जब
हवा के विरुद्ध
उठती है ऊपर, बहुत ऊपर
और दीखती है
सबसे अलग आकाश में !
0
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)