सोमवार, 27 जून 2011

लघुकथा




रंग-परिवर्तन
सुभाष नीरव

आखिर मन्त्री बनने का मनोहर लाल जी का पुराना सपना साकार हो ही गया। शपथ-ग्रहण समारोह के बाद वह मंत्रालय के सुसज्जित कार्यालय में पहुँचे। वहाँ उनके प्रशंसकों का तांता लगा हुआ था। सभी उन्हें बधाई दे रहे थे।
देश-विदेश के प्रतिष्ठित चैनलों, पत्रों और पत्रिकाओं के सैकड़ों पत्रकार व संवाददाता भी वहाँ उपस्थित थे।
एक संवाददाता ने उनसे पूछा, ''मन्त्री बनने के बाद आप अपने मंत्रालय में क्या सुधार लाना चाहेंगे ?''
उन्होंने तत्काल उत्तर दिया, ''सबसे पहले मैं फिजूलखर्ची को बन्द करूंगा।''
''देश और देश की जनता के बारे में आपको क्या कहना है ?''
इस प्रश्न पर वह नेताई मुद्रा में आ गये और धारा-प्रवाह बोलने लगे, ''देश में विकास की गति अभी बहुत धीमी है। देश को यदि उन्नति और प्रगति के पथ पर ले जाना है तो हमें विज्ञान और तकनॉलोजी का सहारा लेना होगा। देश की जनता को धार्मिक अंधविश्वासों से ऊपर उठाना होगा। तभी हम इक्कीसवीं सदी में अपने पहुँचने को सार्थक सिद्ध कर सकेंगे।''
तभी, उनके निजी सहायक ने फोन पर बजर देकर सूचित किया कि छत्तरगढ़ वाले आत्मानंदजी महाराज उनसे मिलना चाहते हैं। मन्त्री जी ने कमरे में उपस्थित सभी लोगों से क्षमा-याचना की। सब-के-सब कमरे से बाहर चले गये।
महाराज के कमरे में प्रवेश करते ही, मन्त्री जी आगे बढ़कर उनके चरणस्पर्श करते हुए बोले, ''महाराज, मैं तो स्वयं आपसे मिलने को आतुर था। यह सब आपकी कृपा का ही फल है कि आज...''
आशीष की मुद्रा में महाराज ने अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाया और चुपचाप कुर्सी पर बैठ गये। उनकी शान्त और गहरी आँखों ने पूरे कमरे का निरीक्षण किया और फिर यकायक चीख-से उठे, ''बचो, मनोहर लाल, बचो!.... इस हरे रंग से बचो। यह रंग तुम्हारी राशि के लिए अशुभ और अहितकारी है।''
मन्त्री महोदय का ध्यान कमरे में बिछे कीमती कालीन, सोफा-कवर्स और खिड़कियों पर लहराते पर्दों की ओर गया। पूरे कमरे में हरीतिमा फैली थी। अभी कुछ माह पहले ही पूर्व मन्त्री क़ी इच्छा पर इसे सुसज्जित किया गया था।
''जानते हो, तुम्हारे लिए नीला रंग ही शुभ और हितकारी है।'' महाराज ने चेताया।
मन्त्री महोदय ने तुरन्त निजी सचिव को तलब किया। उससे कुछ बातचीत की और फिर महाराज को साथ लेकर अपनी कोठी की ओर निकल गये।
अब मंत्रालय के छोटे-बड़े अधिकारी रंग-परिवर्तन के लिए युद्धस्तर पर जुटे थे।
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