
आदमी की फितरत
पहले तुमने मुझे
अपने होंठों से लगाया
फिर आँच दे दी
मेरा जीवन शुरू हो गया
उठाते रहे लुत्फ़ तुम
कश-दर-कश
जब तक मुझमें आँच थी
पर क्या मालूम था मुझे
जब यही आँच बनने लगेगी खतरा
तुम्हारी उंगलियों के लिए
तुम मुझे फर्श पर फेंक
अपने जूते की नोक से
बेरहमी से मसल दोगे।
0
शिखरों पर लोग
जो कटे नहीं
अपनी ज़मीन से
शिखरों को छूने के बाद भी
गिरने का भय
उन्हें कभी नहीं रहा
जिन्होंने छोड़ दी
अपनी ज़मीन
शिखरों की चाह में
वे गिरे
तो ऐसे गिरे
न शिखरों के रहे
न ज़मीन के।
00
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
पहले तुमने मुझे
अपने होंठों से लगाया
फिर आँच दे दी
मेरा जीवन शुरू हो गया
उठाते रहे लुत्फ़ तुम
कश-दर-कश
जब तक मुझमें आँच थी
पर क्या मालूम था मुझे
जब यही आँच बनने लगेगी खतरा
तुम्हारी उंगलियों के लिए
तुम मुझे फर्श पर फेंक
अपने जूते की नोक से
बेरहमी से मसल दोगे।
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शिखरों पर लोग
जो कटे नहीं
अपनी ज़मीन से
शिखरों को छूने के बाद भी
गिरने का भय
उन्हें कभी नहीं रहा
जिन्होंने छोड़ दी
अपनी ज़मीन
शिखरों की चाह में
वे गिरे
तो ऐसे गिरे
न शिखरों के रहे
न ज़मीन के।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)