रविवार, 31 अक्तूबर 2010

कविता



मित्रों, पिछले कुछ माह से घर-परिवार और कार्यालयी उलझनों, परेशानियों के चलते तथा आँख के आप्रेशन के कारण अपने ब्लॉग ‘सृजन-यात्रा’ पर ही नहीं अपितु अपने अन्य ब्लॉगों पर भी ध्यान नहीं दे पाया। स्थितियाँ कुछ बेहतर हुईं तो आज छूटे हुए कामों को पूरा करने का यत्न कर रहा हूँ। ‘सृजन-यात्रा’ में अपनी कुछ कहानियों के बाद कविताओं के प्रकाशन का सिलसिला मैंने आरंभ किया था। इस पोस्ट में अपनी कविता ‘कविता मेरे लिए’ इसलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ कि दीपावली का शुभ-पर्व करीब है और मेरी इस कविता में ‘शब्दों’ को ‘रौशनी’ बनाने की बात आई है। इस कविता को आप सबके सम्मुख दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ रख रहा हूँ…

कविता मेरे लिए

सुभाष नीरव

कविता की बारीकियाँ
कविता के सयाने ही जाने।

इधर तो
जब भी लगा है कुछ
असंगत, पीड़ादायक
महसूस हुई है जब भी भीतर
कोई कचोट
कोई खरोंच
मचल उठी है कलम
कोरे काग़ज़ के लिए।

इतनी भर रही कोशिश
कि कलम कोरे काग़ज़ पर
धब्बे नहीं उकेरे
उकेरे ऐसे शब्द
जो सबको अपने से लगें।

शब्द जो बोलें तो बोलें
जीवन का सत्य
शब्द जो खोलें तो खोलें
जीवन के गहन अर्थ।

शब्द जो तिमिर में
रौशनी बन टिमटिमाएँ
नफ़रत के इस कठिन दौर में
प्यार की राह दिखाएँ।

अपने लिए तो
यही रहे कविता के माने।

कविता की बारीकियाँ तो
कविता के सयाने ही जाने।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)