‘सृजन-यात्रा’ के पिछले अंक में मैंने अपनी कविता ‘काम करता आदमी’ पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत की थी। अंक में प्रस्तुत हैं– पेड़ से जुड़ीं मेरी दो छोटी-छोटी कविताएं …
दो कविताएं/ सुभाष नीरव
पेड़-1
आँधी-पानी सहते हैं
धूप में तपते हैं, झुलसते हैं
तूफानों से करते हैं
मल्लयुद्ध
अपनी ज़मीन छोड़ कर
कहीं नहीं जाते ये पेड़।
मुसीबतों से डरना
और डर कर भागना
आता नहीं इन्हें।
कितने साहसी होते हैं ये पेड़
आदमी के आस पास होते हुए भी
आदमी की राजनीति से अछूते।
अपनी ज़मीन के प्रति
कितने वफ़ादार होते हैं ये पेड़ !
00
पेड़-2
मौसम ज़ुल्म ढाता है
और
चूसने लगता है जब
हरापन
दरख़्तों के चेहरे
पीले पड़ जाते हैं।
आपस में गुप्त
फ़ैसला होता है तब
और
सब के सब
दरख़्त
एकाएक नंगई पर उतर आते हैं।
हार कर एक दिन
मौसम अपने घुटने टेकता है
और तब फिर से
दरख़्तों पर
हरापन फूटता है।
00
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
दो कविताएं/ सुभाष नीरव
पेड़-1
आँधी-पानी सहते हैं
धूप में तपते हैं, झुलसते हैं
तूफानों से करते हैं
मल्लयुद्ध
अपनी ज़मीन छोड़ कर
कहीं नहीं जाते ये पेड़।
मुसीबतों से डरना
और डर कर भागना
आता नहीं इन्हें।
कितने साहसी होते हैं ये पेड़
आदमी के आस पास होते हुए भी
आदमी की राजनीति से अछूते।
अपनी ज़मीन के प्रति
कितने वफ़ादार होते हैं ये पेड़ !
00
पेड़-2
मौसम ज़ुल्म ढाता है
और
चूसने लगता है जब
हरापन
दरख़्तों के चेहरे
पीले पड़ जाते हैं।
आपस में गुप्त
फ़ैसला होता है तब
और
सब के सब
दरख़्त
एकाएक नंगई पर उतर आते हैं।
हार कर एक दिन
मौसम अपने घुटने टेकता है
और तब फिर से
दरख़्तों पर
हरापन फूटता है।
00
(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)