लेखन की शुरूआत कविता से हुई। बाद में, गद्य की ओर मुड़ गया यानी कहानी-लघुकथा की ओर। लेकिन, कविता से रिश्ता निरंतर बना रहा, टूटा नहीं। अच्छी कविताएं और उर्दू-शायरी को खोज-खोज कर पढ़ना आज भी जारी है। अगर मैं यह कहूँ कि जब-जब मैंने जीवन में स्वयं को अकेला महसूस किया है, कविता को ही अपने बहुत करीब पाया है, तो गलत न होगा। कविताओं ने कभी जीवन की चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा दी, तो कभी हताशा-निराशा के अँधेरों में उम्मीद की किरण बन कर चमकीं। कविता ने गद्य की तरह मुझसे अधिक कुछ नहीं मांगा। बस, थोड़ा-सा वक्त, थोड़ा-सा प्रकाश, थोड़ी-सी स्याही, थोड़ा-सा काग़ज़(कभी-कभी तो बस की टिकट के पिछ्ले हिस्से से भी काम चलाया)। लेखन के शुरूआती दिनों में सन् 1979 में मित्र रूपसिंह चन्देल के साथ मिलकर एक छोटा-सा कविता संकलन छ्पा- ‘यत्किंचित’ शीर्षक से। फिर काफी अंतराल के बाद वर्ष 2003 में एकल कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” आया। “सृजन-यात्रा” में अपने कविता संग्रहों और संग्रहों से बाहर की कविताएं मैं समय-समय पर ‘नेट’ की दुनिया के पाठकों के सामने रखता रहूँगा। इस अंक में प्रस्तुत हैं –मेरी एक कविता –‘काम करता आदमी’…
कविता
काम करता आदमी
सुभाष नीरव
कितना अच्छा लगता है
काम करता आदमी।
बहुत अच्छा लगता है
लोहा पीटता लुहार
रंदा लगाता बढ़ई
गोद में बच्चा लिए
पत्थर तोड़ती औरत
और
सड़क बनाता मजदूर।
कितना अच्छा लगता है
मिट्टी के संग मिट्टी हुआ किसान
अटेंशन की मुद्रा में
चौकसी करता जवान।
अच्छा लगता है
फाइलों मे खोया बाबू
पियानों की तरह
टाइपराइटर बजाता टाइपिस्ट।
बहुत अच्छी लगती है
धुआँते चूल्हे में फुंकनी मारती माँ
तवे के आकाश पर
चाँद-सी रोटी सेंकती बहन
धुले-गीले कपड़ों को
अलगनी पर सुखाती पत्नी।
दरअसल
काम करता आदमी
प्रार्थनारत् होता है
और
प्रार्थनारत् आदमी
किसे अच्छा नहीं लगता।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
6 टिप्पणियां:
सुन्दर एवम सत्य
’रोशनी की लकीर’ में तुम्हारी यह कविता पढ़ी थी. पुनः पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
चन्देल
Dear Subhashji
Namaskar.Aap ki kavita kaam karta hua aadmi ---bahut achichi lagi kuinki kaam karte rehna hi jiven ki sundarta ko bdhata hai.Bahut badhi.
Dr.Anjana Sandhir
anjana_sandhir@yahoo.com
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE MEREE
BADHAAEE SWEEKAR KIJIYE.
Aapki es kavita me jivan ka sangeet gunjata hai.kash! kaam ko prarthana se jodkar jivan jiye jane ki drishti sabke pas hoti to samaz ki sari visangatian dur ho jatin..Aaj ki bhatakati pidhi ke liye ye kavita kisi sankalp se kam nahin hai.Roshni ki esi lakir ke jariye ujale ki ora badhana hoga.
Ranjana Srivastava
siliguri
सत्य वचन...हमें काम करते रहना चाहिए
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