मित्रो, कभी-कभी सृजन में भी सूखा आ जाता है। कई-कई
महीने कुछ भी सृजनात्मक नहीं लिखा जाता – न कविता, न कहानी, न लघुकथा और न ही ऐसा ही कुछ और। बड़ी
बेचैनी और छटपटाहट होती है। और कभी-कभी अपने आप ही झड़ी-सी लग जाती है। मेरे साथ
अक्सर ऐसा होता रहता है। कविताएं भी इसी तरह आती हैं, कहानियां भी और लघुकथाएं भी।
गत अगस्त-सितंबर 12 माह में एक लंबी चुप्पी के बाद, एक के बाद एक आठ नई
लघुकथाएं लिखी गईं। अपने कुछ बेहद खास मित्रों को पढ़वाईं। कुछ पास हुईं, कुछ पर और
काम करने की सलाह मिली। ‘बारिश’ उन नई लघुकथाओं में से एक है जिसके पहले ड्राफ़्ट को कुछ
मित्रों ने पसंद किया और मुकम्मल लघुकथा माना और कुछ ने अपनी बेबाक राय देते हुए
कहा कि नहीं, अभी इस पर काम होना शेष है। कहा कि लघुकथा में बूढ़े के किरदार को इस
प्रकार नेगेटिव नहीं दिखाना चाहिए। मुझे भी अपनी रचनाओं को लेकर कोई हड़बड़ी नहीं
रहा करती है, अपनी साहित्यिक यात्रा के इस पड़ाव पर तो बिलकुल नहीं। ‘बारिश’ के तीन ड्राफ़्ट बनें और तीसरा
ड्राफ़्ट कहीं जाकर फाइनल हुआ। उसमें भी फालतू पंक्तियों और शब्दों को उड़ाने का
सिलसिला कुछ समय तक चलता रहा। यह लघुकथा ‘हंस’ में भेजते ही स्वीकृत हो गई और जल्द ही प्रकाशित भी हो गई।
इसे आप ‘हंस’ के दिसम्बर 12 अंक में देख-पढ़
सकते हैं।
अपने ब्लॉग ‘सृजन-यात्रा’ पर अपनी अब तक पुरानी प्रकाशित लघुकथाओं को प्रस्तुत करने
का तो सिलसिला चल ही रहा है, सोचा नई प्रकाशित लघुकथाओं को भी बीच-बीच में ‘सृजन-यात्रा’ में पाठकों के सम्मुख रखता
रहूँ। अत: इस बार ‘बारिश’ आपके समक्ष है।
आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।
-सुभाष नीरव
बारिश
सुभाष नीरव
आकाश पर पहले एकाएक काले बादल छाये, फिर बूँदे पड़ने लगीं। लड़के ने इधर-उधर नज़रें दौड़ाईं। दूर तक कोई घना-छतनार
पेड़ नहीं था। नये बने हाई-वे के दोनों ओर सफेदे के ऊँचे दरख़्त थे और उनके पीछे दूर तक फैले खेत। बाईक के पीछे बैठी
लड़की ने चेहरे पर पड़ती रिमझिम बौछारों की मार से बचने के लिए सिर और चेहरा अपनी
चुन्नी से ढककर लड़के की पीठ से चिपका दिया। एकाएक लड़के ने बाइक धीमी की। बायीं ओर उसे
सड़क से सटी एक छोटी-सी झोंपड़ी नज़र आ गई थी। लड़के ने बाइक उसके सामने जा रोकी और गर्दन
घुमाकर लड़की की ओर देखा। जैसे पूछ रहा हो - चलें ? लड़की भयभीत-सी नज़र
आई। बिना बोले ही जैसे उसने कहा - नहीं, पता नहीं अन्दर कौन
हो ?
एकाएक बारिश तेज़ हो गई। बाइक से उतरकर लड़का
लड़की का हाथ पकड़ तेज़ी से झोंपड़ी की ओर दौड़ा। अन्दर नीम अँधेरा था। उन्होंने देखा, एक बूढ़ा झिलंगी-सी चारपाई पर लेटा था। उन्हें देखकर वह हड़बड़ाकर उठ खड़ा
हुआ।
“हम कुछ देर… बाहर बारिश है…” लड़का बोला।
''आओ, यहाँ बैठ जाओ।
बारिश बन्द हो जाए तो चले जाना।''
इतना कहकर वह बाहर निकलने
लगा।
''पर तेज़ बारिश में तुम...?'' लड़के ने पूछा।
''बाबू, गरमी कई दिनों से
हलकान किए थी। आज मौसम की पहली बारिश का मज़ा लेता हूँ। कई दिनों से नहाया नहीं। तुम
बेफिक्र होकर बैठो।'' कहता हुआ वह बाहर खड़ी बाइक के पास पैरों के
बल बैठ गया और तेज़ बारिश में भीगने लगा।
दोनों के लिए झोंपड़ी में झुककर खड़े रहना
कठिन हो रहा था। वे चारपाई पर सटकर बैठ गए। दोनों काफ़ी भीग चुके थे। लड़की के बालों
से पानी टपक रहा था। रोमांचित हो लड़के ने शरारत की और लड़की को बांहों में जकड़
लिया।
''नहीं, कोई बदमाशी नहीं।'' लड़की छिटक कर दूर हटते हुए बोली, ''बूढ़ा बाहर बैठा है।''
''वह इधर नहीं, सड़क के पार देख रहा
है।'' लड़के ने कहा और लड़की को चूम लिया। लड़की का चेहरा सुर्ख
हो उठा।
एकाएक, वह तेजी से झोंपड़ी
से बाहर निकली और बांहें फैलाकर पूरे चेहरे पर बारिश की बूदें लपकने लगी। फिर वह
झोंपड़ी में से लड़के को भी खींच कर बाहर ले आई।
''वो बूढ़ा देखो कैसे मज़े से बारिश का आनन्द
ले रहा है और हम जवान होकर भी बारिश से डर रहे हैं।'' वह धीमे से
फुसफुसाई और बारिश की बूँदों का आनंद लेने लगी।
लड़की की मस्ती ने लड़के को भी उकसाया। दोनों
बारिश में नाचने-झूमने लगे। बूढ़ा उन्हें यूँ भीगते और मस्ती करते देख चमत्कृत था। एकाएक
वह अपने बचपन के बारिश के दिनों में पहुँच गया। और उसे पता ही न चला, कब वह उठा और
मस्ती करते लड़का-लड़की के संग बरसती बूँदों को चेहरे पर लपकते हुए थिरकने लग पड़ा।