मित्रो
'सृजन-यात्रा' में इस माह अपनी लघुकथाओं के प्रकाशन के सिलसिले को विराम देते हुम 'माँ दिवस' पर अपनी एक ग़ज़ल आपसे साझा कर रहा हूँ। यह तो ग़ज़ल के पारखी ही बताएँगे कि यह ग़ज़ल है भी कि नहीं, पर 'माँ' को लेकर मेरे भीतर जो पवित्र भावना रही है, उसे इसी रूप में अभिव्यक्त कर पाया हूँ। आशा है, आप भी मेरे भीतर की भावना से सहमत होंगे…
सुभाष नीरव
माँ
दुनिया भर की दुख- तक़लीफें भुला लिया करता हूँ
माँ के दामन में जब सर को छुपा लिया करता हूँ
माँ देती जब ढारस मुझको मेरी नाकामी पे
अपने भीतर दूनी ताकत जुटा लिया करता हूँ
खफ़ा खफ़ा सी नींद मेरी तब मुझे मनाती है
माँ की बांहों को तकिया जब बना लिया करता हूँ
माँ ही मंदिर, माँ ही मस्जिद, माँ गिरजा - गुरद्वारा
रब के बदले माँ को मैं सर नवा लिया करता हूँ
यही हुनर सीखा है मैंने हर पल खटती माँ से
बोझ कोई भी हो हंस कर उठा लिया करता हूँ
मायूसी के अँधियारों में जब-जब घिर जाता हूँ
माँ की यादों के दीपक तब जला लिया करता हूँ
माँ के दामन में जब सर को छुपा लिया करता हूँ
माँ देती जब ढारस मुझको मेरी नाकामी पे
अपने भीतर दूनी ताकत जुटा लिया करता हूँ
खफ़ा खफ़ा सी नींद मेरी तब मुझे मनाती है
माँ की बांहों को तकिया जब बना लिया करता हूँ
माँ ही मंदिर, माँ ही मस्जिद, माँ गिरजा - गुरद्वारा
रब के बदले माँ को मैं सर नवा लिया करता हूँ
यही हुनर सीखा है मैंने हर पल खटती माँ से
बोझ कोई भी हो हंस कर उठा लिया करता हूँ
मायूसी के अँधियारों में जब-जब घिर जाता हूँ
माँ की यादों के दीपक तब जला लिया करता हूँ
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15 टिप्पणियां:
दिल को छू गई आपकी यह भावपूर्ण कविता ।
भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई।
MAA KO SAMARPIT AAPKEE GAZAL SE
MERA MAN BHEEG GAYAA HAI .
मन की गहराइयों से निकले मन को छूने वाले भावों की सहज सरल किन्तु प्रभावी अभिव्यक्ति है।
इससे बढ़कर माँ के प्रति और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है? बधाई सुभाष जी !!!
माँ पर एक मार्मिक रचना के लिये साधुवाद....ओमप्रकाश यती
भाई सुभाष,
मां को समर्पित तुम्हारी यह गज़ल अंदर तक छू गयी. बहुत अच्छी और मार्मिक गज़ल.
बधाई.
चन्देल
बहुत भावप्रवण ग़ज़ल है...बधाई...।
प्रियंका
kya hi sunder gazal hai
hunar wala sher ti kamal ka hai
bahut bahut badhai
saader
rachana
पढ़ कर माँ कृतज्ञ ज़रूर हुई होंगी ! सुन्दर रचना की बधाई स्वीकार करें !
Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com
बहुत अच्छी रचना है... बधाई...!
bhai saab
pranam !
behad sunder bahivyakti , har sher sunder hai , dil ko choone wala ! sadhuwad , badhai !
saadar !
भावप्रवण ग़ज़ल है...बधाई...mamta
अच्छी रचना है, बधाई। छिपा की जगह 'छुपा'और निवा की जगह 'नवा' कर दीजिए तो बेहतर होगा।
देवमणि पाण्डेय (मुम्बई)
Neerav ji
aapki ghazal ka kathya aur shipl bahut hi accha laga. har sher ek sampoorn bimb ukerne mein saksham hai
shubhkamanon sahit
बड़ी ही सरलता और सहजता से अनुभूतियों को व्यक्त कर अंतर्मन को छू लिया है.
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