शनिवार, 10 सितंबर 2011

लघुकथा


अच्छा तरीका

सुभाष नीरव


राकेश ने एम.ए. अंग्रेजी विषय लेकर किया था और मैंने हिन्दी विषय लेकर। दो सालों की बेकारी के बाद वह शहर के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने लगा था। मैं गाँव में ही रह गया और अभी भी बच्चों को इकट्ठा करके 'अ आ इ ई' पढ़ा रहा हूँ।

एक बार मुझे शहर जाना पड़ा। ठहरने के लिए मैं राकेश के घर चला गया। सुबह-सुबह जब मैं उसके घर पहुँचा तो वह कुछेक बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहा था। दो-तीन बैच पढ़ाकर नौ बजे वह स्कूल चला गया। शाम को चार बजे के करीब लौटा। कुछ बच्चे पहले से ही आये बैठे थे। वह तुरन्त उनको पढ़ाने बैठ गया। आठ-आठ, दस-दस बच्चों के कई बैच उसने रात नौ बजे तक पढ़ाये।

जब सभी बच्चे पढ़कर चले गये तो मैंने उससे पूछा, ''राकेश, इतने बच्चों को तुम ट्यूशन....।''

''इसमें क्या मुश्किल है ? सीधा-सा तरीका है।''

''क्या ?'' मैंने उत्सुकता जाहिर की।

वह मेरे बहुत करीब खिसक आया जैसे कोई राज़ की बात बताने जा रहा हो।

''बात यह है, यार, परीक्षा के दिनों में अंग्रेजी विषय की कापियाँ मैं ही जाँचता हूँ। छमाही परीक्षा में मैं अधिकांश बच्चों को फेल कर देता हूँ, या बहुत कम नंबर देता हूँ। बच्चे हिन्दी में या किसी अन्य भाषा में भले ही कम नंबर लायें या फेल हो जायें, कोई भी अभिभावक यह नहीं चाहता कि उसका बच्चा अंग्रेजी में फिसड्डी रहे।''

''फिर ?''

''फिर क्या ?'' वह बोला, ''बस, कुछ ही दिनों बाद कुछ बच्चों के अभिभावक मुझसे मिलते हैं और अनुरोध करते हैं कि मैं उनके बच्चे को ट्यूशन पढ़ाऊँ। कुछेक अभिभावकों से मैं ख़ुद भी मिलता हूँ। उनसे कहता हूँ- देखिये, आपका बच्चा अंग्रेजी में बहुत कमजोर है। आप स्वयं भी इसे घर में पढ़ाया करें। बस, तुम तो जानते ही हो, आजकल किस अभिभावक के पास इतना समय है कि वह अपने बच्चों के संग सिर-खपाई करे। सो, वे कह उठते हैं- मास्टर जी, आप ही हमारे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया कीजिये न। और मैं स्वीकार कर लेता हूँ।''

मुझे अवाक् देखकर उसने अपनी दायीं आँख होले से दबाई और मुसकराकर बोला, ''क्यों, अच्छा तरीका है न?''

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18 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

यथार्थपरक लघुकथा...

Vandana Ramasingh ने कहा…

shiksha kii yahi samanantar vyvstha pradushan faila rahi hai .....achchhi laghukatha

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

शिक्षा जैसे पावन क्षेत्र में पसरते घोर व्यावसायिकता शिद्दत से रेखांकित हो गयी है इस लघुकथा में...
इस क्षेत्र में बहुत संवेदनशील कदम उठाये जाने की आवश्यकता है....
सुन्दर कथा...
सादर साधुवाद....

बलराम अग्रवाल ने कहा…

अर्थ-आधारित मानसिकता भी अन्तत: समाज ही बनाता है।

गुड्डोदादी ने कहा…

शिक्षा व्यापार
प्राचीन समय वापिस आना चाहिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सही दृश्य दिखाती अच्छी लघु कथा

चण्डीदत्त शुक्ल ने कहा…

यथार्थ, कटाक्ष, संक्षेप में धारदार लेखन। मुबारक़।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

धारदार लेखन।

PRAN SHARMA ने कहा…

LAGHU KATHA MEIN YTHAARTH ACHCHHAA
LAGAA HAI .

बेनामी ने कहा…

बहुत कटु लेकिन सत्य है. दुःख तो इस बात का है कि जो लोग इस अच्छे तरीके में माहिर होते हैं वही सामाजिक नज़रिए से सफल माने जाते हैं. आज सफलता-असफलता या समाज में हैसियत मापने का पैमाना आर्थिक स्तर जो बन गया है. बहुत सुन्दर, मन-मानस को झकझोरने वाली कथा.

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

aaj ki sachchai bayan karti ek sundar rachna, badhai...

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

आज की कटु वास्तविकता. सहज और यथार्थपरक लघुकथा. बधाई.

चन्देल

उमेश महादोषी ने कहा…

यथार्थ यही है।

सुरेश यादव ने कहा…

यह लघुकथा वास्तव में यथार्थ पर करारी चोट है .हिंदी सप्ताह के मौसम में इसका अलग महत्व भी है जिसे सभी ने अनदेखा कर दिया है .आप को हार्दिक बधाई .

Shabad shabad ने कहा…

100% sahi likha hai ....
hamare paas soch hai..ham uska galat priyog kar rahe hain....

isi liye ....haal sab ko maloom hi hai !

hardeep

प्रेम गुप्ता `मानी' ने कहा…

वर्तमान समय का यथार्थ यही है...। शिक्षा जगत की शायद सबसे बड़ी त्रासदी भी यही है...। एक सटीक रचना के लिए मेरी बधाई...।
मानी

ashok andrey ने कहा…

ek sachchai ko bayaan karti is lagakathaa ko padvane ke liye aabhar, bhai subhash jee.

अनुपमा पाठक ने कहा…

कटु सत्य दर्शाती कथा!