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मित्रो
लेखक की आँख हर समय अपने समय, समाज और परिवेश पर लगी रहती है। वह वातावरण और परिवेश जहाँ उसका अधिकांश समय व्यतीत होता है, उसे प्रभावित करता रहता है। वह उससे बच नहीं सकता। मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी दफ़्तर में गुज़रा होने के कारण मुझे मेरी बहुत-सी रचनाओं के बीज इसी वातावरण और परिवेश से मुझे मिले। ‘दौड़’, ‘गोली दागो रामसिंह’ ‘भेड़िये’, ‘सूराख’ कहानियाँ और ‘अपने क्षेत्र का दर्द’, ‘रफ़ कॉपी’, ‘चन्द्रनाथ की नियुक्ति’, ‘चीत्कार’, ‘धूप’ ‘बीमारी’, ‘रंग परिवर्तन’, ‘कबाड़’, ‘चोर’ आदि लघुकथाएँ इसी वातावरण और परिवेश की उपज हैं। दफ़्तरी माहौल पर लिखी अपनी लघुकथा ‘चन्द्रनाथ की नियुक्ति’ को मैं यहाँ अपनी ‘लघुकथाओं की श्रृंखला’ की अगली कड़ी के तौर पर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपकी राय की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
-सुभाष नीरव
चन्द्रनाथ की नियुक्ति
सुभाष नीरव
उप सचिव घर जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि फोन की घंटी घनघना उठी। दूसरी ओर सचिव महोदय थे। उप सचिव अपनी कुर्सी पर से उठ-से गये। सचिव महोदय बेहद गुस्से में लग रहे थे। वह चन्द्रनाथ की नियुक्ति के विषय में पूछ रहे थे। चन्द्रनाथ मन्त्री जी के गाँव का आठवीं पास बेरोजगार युवक था। वह मन्त्री जी की सिफारिश पर मंत्रालय में तदर्थ आधार पर चपरासी पद के लिए चुना गया था। लेकिन, अभी तक उसे नियुक्ति-पत्र नहीं मिला था। सचिव महोदय ने कड़े शब्दों में कहा कि उन्हें एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट मिलनी चाहिए कि क्या हुआ।
उप सचिव महोदय को शाम को अपने एक मित्र की लड़की की शादी में सम्मिलित होना था। उन्हें देर हो रही थी। पाँच बजे आफिस छोड़ देना चाह रहे थे वह। झल्लाते हुए उन्होंने अवर सचिव का नम्बर घुमाया। दूसरी ओर से फोन उठाते ही वह पिल पड़े, ''क्या करते हैं आप ?... छोटे-छोटे काम भी नहीं कर सकते ? चन्द्रनाथ की नियुक्ति में देरी क्यों हो रही है ? मुझे तीन दिन के भीतर रिपोर्ट दो कि आपने क्या किया ?''
अवर सचिव महोदय सुबह से ही खुश मूड में थे और वह इसी मूड में घर लौटना चाह रहे थे। पत्नी को सिनेमा ले जाने का वायदा करके आये थे। इस एक फोन ने उनका सारा मूड खराब कर दिया। उन्होंने घड़ी देखी, पाँच बज रहे थे। चपरासी को बुलाकर उन्होंने कहा, ''भल्ला साहब को तुरन्त मेरे पास भेजो।''
भल्ला साहब प्रशासन अनुभाग में अनुभाग अधिकारी थे। अवर सचिव के बुलावे पर दौड़ते हुए उनके केबिन की ओर लपके।
''यह क्या काम हो रहा है, भल्ला जी ?... छोटे-मोटे काम के लिए इतना समय ?... चन्द्रनाथ की नियुक्ति में इतनी देर क्यों ?... आप लोग काम नहीं करते और ऊपर से हमें... एक चपरासी की नियुक्ति में इतनी देर और वह भी मन्त्री जी के आदमी के मामले में! मुझे दो दिन में रिपोर्ट दो कि क्या किया है आपने ?... समझे!''
भल्ला साहब अवर सचिव के केबिन से निकलकर सीधे सम्बन्धित क्लर्क के पास पहुँचे और एकाएक बरस पड़े, ''रामलाल जी, आप क्यों बेवजह केस को दबाये रखते है ं?... यह चन्द्रनाथ की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही ?''
''सर, पुलिस वैरीफिकेशन के कागज कल ही प्राप्त हुए हैं। मैं सोच रहा था, औरों के भी आ जाते तो एक साथ ही एप्वाइंटमेंट लेटर...''
''अरे, आते रहेंगे औरों के... आप चन्द्रनाथ की एप्वाइंटमेंट लेटर तैयार कीजिये। आज, अभी बैठकर...'' भल्ला साहब जोर देकर बोले। अपना ब्रीफकेस बन्द करते हुए वह बुदबुदाये, ''पार्टी में जाना था, लेट हो गया।'' और कमरे से तेजी के साथ बाहर निकल गये।
पूरा कमरा खाली हो चुका था। केवल रामलाल ही अपनी सीट पर अभी तक बैठा हुआ था- चन्द्रनाथ की फाइल खोले। एकाएक उसे याद आया, आज तो उसे पत्नी की दवा लानी है। और मिट्टी का तेल भी कई दिनों से खत्म है! उसने फुर्ती से मेज पर रखे कागज समेटे और उठ खड़ा हुआ। एक बार घड़ी की ओर देखा और फिर तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
चन्द्रनाथ की फाइल मेज पर रखी पेंडिंग फाइलों में पुन: पहुँच गयी।
लेखक की आँख हर समय अपने समय, समाज और परिवेश पर लगी रहती है। वह वातावरण और परिवेश जहाँ उसका अधिकांश समय व्यतीत होता है, उसे प्रभावित करता रहता है। वह उससे बच नहीं सकता। मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी दफ़्तर में गुज़रा होने के कारण मुझे मेरी बहुत-सी रचनाओं के बीज इसी वातावरण और परिवेश से मुझे मिले। ‘दौड़’, ‘गोली दागो रामसिंह’ ‘भेड़िये’, ‘सूराख’ कहानियाँ और ‘अपने क्षेत्र का दर्द’, ‘रफ़ कॉपी’, ‘चन्द्रनाथ की नियुक्ति’, ‘चीत्कार’, ‘धूप’ ‘बीमारी’, ‘रंग परिवर्तन’, ‘कबाड़’, ‘चोर’ आदि लघुकथाएँ इसी वातावरण और परिवेश की उपज हैं। दफ़्तरी माहौल पर लिखी अपनी लघुकथा ‘चन्द्रनाथ की नियुक्ति’ को मैं यहाँ अपनी ‘लघुकथाओं की श्रृंखला’ की अगली कड़ी के तौर पर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपकी राय की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
-सुभाष नीरव
चन्द्रनाथ की नियुक्ति
सुभाष नीरव
उप सचिव घर जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि फोन की घंटी घनघना उठी। दूसरी ओर सचिव महोदय थे। उप सचिव अपनी कुर्सी पर से उठ-से गये। सचिव महोदय बेहद गुस्से में लग रहे थे। वह चन्द्रनाथ की नियुक्ति के विषय में पूछ रहे थे। चन्द्रनाथ मन्त्री जी के गाँव का आठवीं पास बेरोजगार युवक था। वह मन्त्री जी की सिफारिश पर मंत्रालय में तदर्थ आधार पर चपरासी पद के लिए चुना गया था। लेकिन, अभी तक उसे नियुक्ति-पत्र नहीं मिला था। सचिव महोदय ने कड़े शब्दों में कहा कि उन्हें एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट मिलनी चाहिए कि क्या हुआ।
उप सचिव महोदय को शाम को अपने एक मित्र की लड़की की शादी में सम्मिलित होना था। उन्हें देर हो रही थी। पाँच बजे आफिस छोड़ देना चाह रहे थे वह। झल्लाते हुए उन्होंने अवर सचिव का नम्बर घुमाया। दूसरी ओर से फोन उठाते ही वह पिल पड़े, ''क्या करते हैं आप ?... छोटे-छोटे काम भी नहीं कर सकते ? चन्द्रनाथ की नियुक्ति में देरी क्यों हो रही है ? मुझे तीन दिन के भीतर रिपोर्ट दो कि आपने क्या किया ?''
अवर सचिव महोदय सुबह से ही खुश मूड में थे और वह इसी मूड में घर लौटना चाह रहे थे। पत्नी को सिनेमा ले जाने का वायदा करके आये थे। इस एक फोन ने उनका सारा मूड खराब कर दिया। उन्होंने घड़ी देखी, पाँच बज रहे थे। चपरासी को बुलाकर उन्होंने कहा, ''भल्ला साहब को तुरन्त मेरे पास भेजो।''
भल्ला साहब प्रशासन अनुभाग में अनुभाग अधिकारी थे। अवर सचिव के बुलावे पर दौड़ते हुए उनके केबिन की ओर लपके।
''यह क्या काम हो रहा है, भल्ला जी ?... छोटे-मोटे काम के लिए इतना समय ?... चन्द्रनाथ की नियुक्ति में इतनी देर क्यों ?... आप लोग काम नहीं करते और ऊपर से हमें... एक चपरासी की नियुक्ति में इतनी देर और वह भी मन्त्री जी के आदमी के मामले में! मुझे दो दिन में रिपोर्ट दो कि क्या किया है आपने ?... समझे!''
भल्ला साहब अवर सचिव के केबिन से निकलकर सीधे सम्बन्धित क्लर्क के पास पहुँचे और एकाएक बरस पड़े, ''रामलाल जी, आप क्यों बेवजह केस को दबाये रखते है ं?... यह चन्द्रनाथ की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही ?''
''सर, पुलिस वैरीफिकेशन के कागज कल ही प्राप्त हुए हैं। मैं सोच रहा था, औरों के भी आ जाते तो एक साथ ही एप्वाइंटमेंट लेटर...''
''अरे, आते रहेंगे औरों के... आप चन्द्रनाथ की एप्वाइंटमेंट लेटर तैयार कीजिये। आज, अभी बैठकर...'' भल्ला साहब जोर देकर बोले। अपना ब्रीफकेस बन्द करते हुए वह बुदबुदाये, ''पार्टी में जाना था, लेट हो गया।'' और कमरे से तेजी के साथ बाहर निकल गये।
पूरा कमरा खाली हो चुका था। केवल रामलाल ही अपनी सीट पर अभी तक बैठा हुआ था- चन्द्रनाथ की फाइल खोले। एकाएक उसे याद आया, आज तो उसे पत्नी की दवा लानी है। और मिट्टी का तेल भी कई दिनों से खत्म है! उसने फुर्ती से मेज पर रखे कागज समेटे और उठ खड़ा हुआ। एक बार घड़ी की ओर देखा और फिर तेजी से कमरे से बाहर निकल गया।
चन्द्रनाथ की फाइल मेज पर रखी पेंडिंग फाइलों में पुन: पहुँच गयी।
7 टिप्पणियां:
सरकारी कम कैसे होते हैं ....सही खाका खींचा है ... अच्छी लघुकथा
आपकी लघुकथाएं आईना हैं
सही खाका है सरकारी विभागों का .....
बहुत अच्छी लघु कथा .....
You contribute so much to literature. No day goes without ur contribution.
I salute you.
when I get better I will start reading.
god be with u .
-Rajinder Kaur
rajinderb@hotmail.com
सरकारी दफ़्तरों का कामकाज कैसे होता है, इसका बड़ा सटीक खाका खींचा है आपने...बधाई...।
प्रियंका
aapki yeh laghu kathaa sarkari karya-shaili par kaphi kuchh keh gai hai chand shabdon men,badhai.
इस लघु कथा में आपकी sense of humor अच्छी बाहर आई है. अच्छी कहानी.
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