गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

कविता









दो कविताएँ/ सुभाष नीरव

ठोकरें

पहली ठोकर
उसके क्रोध का कारण बनी।

दूसरी ने
उसमें खीझ पैदा की।

तीसरी ठोकर ने
किया उसे सचेत।

चौथी ने भरा
आत्म-विश्वास
उसके भीतर।

अब नहीं करता
वह परवाह
ठोकरों की !
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रास्ते

बने बनाये रास्ते
ले गए हमको
अपनी ही तयशुदा
मंज़िल पर।

रास्ते जो
हमने बनाये
उन्हें हम ले गए
अपनी मनचाही
मंज़िल पर।
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(कविता संग्रह “रोशनी की लकीर” में संग्रहित)

4 टिप्‍पणियां:

राजीव तनेजा ने कहा…

प्रेरणा देती दोनों कविताएँ बहुत बढिया लगी

सुरेश यादव ने कहा…

भाई नीरव जी इन सहज कविताओं केलिए आप को बधाई.

Devi Nangrani ने कहा…

bahut ggahri baat mein doobkar kuch arth hasil hua jata hai

raste jo
hamne manaye
unhein ham le gaye
apni manchahi manzil par

har rachna mein ek anmol sandesh hai.
Devi nagrani

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...