कविता
दो कविताएँ/ सुभाष नीरव
ठोकरें
पहली ठोकर
उसके क्रोध का कारण बनी।
दूसरी ने
उसमें खीझ पैदा की।
तीसरी ठोकर ने
किया उसे सचेत।
चौथी ने भरा
आत्म-विश्वास
उसके भीतर।
अब नहीं करता
वह परवाह
ठोकरों की !
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रास्ते
बने बनाये रास्ते
ले गए हमको
अपनी ही तयशुदा
मंज़िल पर।
रास्ते जो
हमने बनाये
उन्हें हम ले गए
अपनी मनचाही
मंज़िल पर।
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(कविता संग्रह “
रोशनी की लकीर” में संग्रहित)
4 टिप्पणियां:
प्रेरणा देती दोनों कविताएँ बहुत बढिया लगी
भाई नीरव जी इन सहज कविताओं केलिए आप को बधाई.
bahut ggahri baat mein doobkar kuch arth hasil hua jata hai
raste jo
hamne manaye
unhein ham le gaye
apni manchahi manzil par
har rachna mein ek anmol sandesh hai.
Devi nagrani
बहुत बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
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